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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५ ___ ६४ निष्पाप जीवन-सभी सुखों का कारण : संसार में जीवों को सुख चाहिए। जीवों का समग्र पुरुषार्थ सुख पाने के लिए ही है। चाहे वे सुख भौतिक हों या आध्यात्मिक। तीर्थंकर भगवंत सब प्रकार के सुख पाने का मार्ग बताते हैं-वह मार्ग है धर्म का | उन्होंने विश्व के सर्व मनुष्य को लक्ष्य बनाकर कहा कि सुख धर्म से मिलेगा, पापों से नहीं। सुख पाना है तो पापों का त्याग करो। हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, परिग्रह इत्यादि पापों का त्याग करना ही पड़ेगा, यदि सुखी होना है तो | धन-संपत्ति पाने के लिए पाप करने की आवश्यकता नहीं है। प्रिय विषयसुख पाने के लिए पापाचरण करने की जरूरत नहीं है। वैसे स्वर्ग के सुख पाने के लिए भी पाप करने, पशुयज्ञ इत्यादि आवश्यक नहीं है। मोक्ष तो पापों से प्राप्त हो ही नहीं सकता। निष्पाप जीवन ही सर्व सुखों का असाधारण कारण है। क्या चाहिए? आप लोग कहेंगे : मोक्ष चाहिए| चाहिए मोक्ष? मोक्ष की चाहना है? मोक्ष पाने की भावना प्रकट हो, ऐसी इच्छा है? क्यों चाहिए मोक्ष? संसार में संसार की चारों गतियों में दुःख है इसलिए न? उस जीवराज सेठ को भी मोक्ष की चाहना थी! उसको वैकुंठ में जाने की कैसी भावना थी? मरकर पशुयोनि में चला गया तो वहाँ भी नारदजी पहुँच गये! क्योंकि सेठ को वैकुंठ में ले जाना था। नारदजी ने सेठ के वचनों पर, उनकी बाह्य धर्मक्रियाओं पर विश्वास कर लिया था! सेठ नारदजी को चकमा दे रहा है! देते हो न आप लोग साधु-पुरुषों को चकमा? आप लोगों की बातों में हम लोग आ जाएँ तो? सभा में से : हम डूबें और आपको भी डुबो दें। महाराजश्री : ऐसा काम आप जैसे सज्जन लोग करते हैं क्या? सज्जन मायावी नहीं होता। सज्जन कपट नहीं करता। दूसरों को धोखा नहीं देता। हाँ, कभी स्वयं दुःखी होगा परन्तु दूसरों को दुःखी नहीं करेगा। स्वयं गिर सकता है, दूसरों को नहीं गिराएगा। यह तो अच्छा था कि नारदजी थे। सावधान थे। सेठ ने दो महीने के बाद आने का वादा किया। नारदजी चले गए। दो महीने बीतने में क्या देरी? बीत गये दो महीने और नारदजी पहुँच गए वापस | पहुँचे जीवराज सेठ की दुकान पर| लड़के ने स्वागत किया नारदजी का और आने का प्रयोजन पूछा | नारदजी ने अनाज के 'गोडाऊन' की चाबी माँगी। लड़के ने कहा : 'गोडाऊन अभी खुला ही पड़ा है, उसमें माल नहीं है।' नारदजी वहाँ से सीधे 'गोडाऊन' पहुँचे। गोडाऊन खुला ही था। भीतर गए, जहाँ वह बिल्ला मिला था, उस जगह पर गए। बिल्ला For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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