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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५ प्रवचन-४ वैकुंठ में! भगवान के पास जाकर पूछ लूँ सेठ का पता...नया 'एड्रेस'! नारदजी गये भगवान के पास | भगवान के मुख पर मुस्कराहट थी। नारदजी शरमिंदा थे। भगवान ने कहा : 'नारदजी, सेठ मर गया न? नहीं आएगा वह वैकुंठ में, छोड़ दो अब उस बात को ।' ___ 'भगवंत, वह सेठ मर कर कहाँ पैदा हुआ होगा? आप तो जानते हैं, मुझे बता दो! मैं वहाँ जाकर ले आता हूँ उस सेठ को। क्या करे बेचारा सेठ? आयुष्य पूर्ण हो गया उसका, अन्यथा वह भक्त अवश्य यहाँ आता।' नारदजी ने सेठ के गुण गाये! भगवान तो जानते ही थे नारदजी के स्वभाव को! उन्होंने कहा : 'देवर्षि, वह सेठ मर कर बिल्ला हुआ है!' नारदजी तो सुनकर स्तब्ध हो गये, आँखें चौड़ी हो गईं। वह बोले : 'क्या फरमाते हो भगवान? सेठ मर कर तिर्यंचयोनि में गया? बिल्ले का भव?' ___ हाँ, बिल्ले का भव मिला है। वह बिल्ला अभी सेठ के लड़के के अनाज के 'गोडाउन' में है। लड़के ने अनाज का बड़ा व्यापार किया है, अनाज के बड़े बड़े कोठार भरे हैं, वहाँ पर है वह सेठ!' नारदजी ने वहाँ जाकर बिल्ले को प्रतिबोध देने का सोचा अपने मन में | 'क्या हो गया बिल्ला हुआ तो? आखिर है तो आत्मा। ज्ञानी पुरुषों की दृष्टि में तो देव हो या मानव हो, तिर्यंच पशु हो या नारकी का नारक जीव, सब समान होते हैं। कलेवर बिल्ले का है, लेकिन है तो सच्चिदानन्द रूप आत्मा न! नारदजी पहुँचे उसी शहर में उस सेठ के लड़के के पास | लड़के से कहा : 'भाई तेरे अनाज के कोठार में मुझे कुछ देखना है, चाबी लेकर मेरे साथ चलेगा?' लड़के ने कहा : 'महाराज, आपको अनाज चाहिए न? आप कहिए, मैं यहाँ मँगवाकर देता हूँ अनाज ।' 'नहीं भाई, नहीं, मुझे अनाज नहीं चाहिए, मुझे तो कोठार देखना है। लड़के ने मुनीमजी को कोठार की चाबी लेकर भेजा नारदजी के साथ | मुनीम ने कोठार खोल दिया। मुनीम को बाहर खड़ा कर, नारदजी पहुँचे भीतर | भीतर अँधेरा था, अनाज के हजारों बोरे भरे पड़े थे कोठार में | नारदजी चलते ही रहे, जब एकदम भीतर पहुंचे, तो उन्होंने बिल्ले की रेडियम' जैसी चमकती आँखें देखी। नारदजी को संतोष हुआ, आनन्द हुआ क्योंकि उनके सेठ मिल गये थे न! For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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