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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४ ___५० होती है। अन्तराय कर्म के क्षय से वीर्य प्रगट होता है। नाम कर्म के क्षय से अरूपीपन प्राप्त होता है। गोत्र कर्म के क्षय से अगुरु-लघु अवस्था प्रगट होती है। आयुष्य कर्म के क्षय से अक्षय स्थिति प्रकट होती है और वेदनीय कर्म के क्षय से अव्याबाध स्थिति प्रकट होती है। मोक्ष में आत्मा की स्थिति-अवस्था ऐसी शाश्वत् गुणमय अवस्था होती है। गुणमूलक अनन्त आनन्द की सर्वदा अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति प्राप्त होने के पश्चात् कभी भी आत्मा कर्मों के बंधनों से बंधती नहीं है, अतः उसको पुनः संसार में अवतरित होना नहीं पड़ता। __ अशरीरी, अमोही, अद्वेषी आत्मस्थिति प्राप्त करने की अभिलाषा है? परमानन्दपूर्ण सच्चिदानन्दमय आत्मस्थिति प्राप्त करने के मनोरथ जाग्रत हुए हैं? 'हमारी मोक्ष पाने की भावना है, ऐसा बोलने मात्र से मोक्ष मिलने का नहीं। किसी को नहीं मिला है! आपको बोलने मात्र से कैसे मिलेगा? थोड़े क्षण हवा नहीं मिले तो कैसी बेचैनी हो जाती है? कैसी अकुलाहट हो जाती है? वैसी बेचैनी, अकुलाहट मोक्ष के बिना कभी हुई? अशरीरी बनने की बातें करो और शरीर का अपरंपार मोह करो! अरागी-अद्वेषी बनने की बातें करो और दिन-रात राग-द्वेष की होली खेलो! अनन्त ज्ञानमय आत्मस्थिति प्रकट करने की बातें करो और घोर अज्ञान दशा में जीवन पूर्ण करो! ऐसी है मोक्ष पाने की आपकी इच्छा! आत्मवंचना क्यों करते हो? शरीर से मुक्त बनने की कल्पना भी कभी आई? मुक्ति की इच्छा ही नहीं और मोक्ष की बातें करते हो। परमात्मा से मोक्ष माँगते हो। क्या कर रहे हो आप लोग? संसारसुखों में ही निमग्न रहना और मोक्ष पाने की बात करनाकैसा विसंवाद है यह? कल्पना में, ध्यान में भी शुद्ध आत्मद्रव्य देखा है? 'मैं शुद्ध आत्मद्रव्य हूँ' ऐसी कल्पना भी आई है कभी? यदि ऐसी कल्पना आती रहती है, पुनः पुनः आती रहती है, तो मोक्षप्रीति प्रकट होगी। मोक्ष के प्रति प्रीति प्रकट होने पर धर्म का प्रभाव अनुभव में आएगा। धर्म से मोक्ष मिल जाएगा। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि मोक्षदशा को समझो, मोक्षदशा की चाहना प्रकट करो, फिर देखो धर्म का प्रभाव! उस जीवराज सेठ को मोक्षदशा का ही ज्ञान नहीं था! मोक्ष की चाहना भी नहीं थी | मोक्षार्थी का दिखावा करने की प्रबल इच्छा थी, क्योंकि इससे वह नारदजी की दृष्टि में सम्मानपात्र बन सकता था! बन गया न सम्मानपात्र? नारदजी ने भगवान के आगे भी जीवराज के गुण गाये! For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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