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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३ नरक में दुःख की बेबसी तो स्वर्ग में सुख की लाचारी!: सब देव एक समान नहीं होते हैं। अधोलोक में, इस पृथ्वी के नीचे जो देव रहते हैं वे व्यंतर-वाणव्यंतर और भवनपति कहलाते हैं। ऊर्ध्वलोक में जो देव होते हैं वे वैमानिक देव कहलाते हैं। ऊपर-ऊपर बारह देवलोक हैं। उनके ऊपर 'नवग्रैवेयक' देवलोक आए हुए हैं और उसके भी ऊपर 'पाँच अनुत्तर' देवलोक आए हुए हैं। प्राचीनतम ग्रन्थों में देवलोक का इतना सूक्ष्म और यथार्थ वर्णन मिलता है कि पढ़ने के बाद मन में निर्णय हो जाता है कि देवलोक होना ही चाहिए। देवों का आयुष्य, उनके शरीर की रचना, शरीर की ऊँचाई, उनकी शक्ति, उनके निवासस्थान, वहाँ के देव-देवी के यौन संबंध, निवासों की रचना, संख्या, स्तंभ, आकार... इत्यादि सैंकड़ों बातें आंकड़ों के साथ बताई गई हैं। मात्र कल्पना होती तो इस प्रकार का इतना वर्णन नहीं हो सकता था। धर्म से स्वर्ग मिलता है, अर्थात धर्म स्वर्ग भी देता है। क्योंकि स्वर्ग में भौतिक सुखों की भरमार है। वहाँ जन्म का दुःख नहीं, मृत्यु की वेदना नहीं! वहाँ व्याधि नहीं, रोग नहीं। वहाँ देव किसी देवी के पेट से पैदा नहीं होता है! मनुष्य और पशु की तरह देव को माँ के पेट में नहीं रहना पड़ता है। वहाँ तो होती है पुष्पशय्या! आत्मा उस शय्या में ही देव का शरीर धारण कर लेती है। वहाँ बाल्यावस्था या वृद्धावस्था नहीं होती है, वहाँ तो होता है नित्य यौवन! पैदा होते ही युवान! वहाँ धन-दौलत कमानी नहीं पड़ती! अर्थ और काम तैयार 'रेडीमेड' ही मिल जाते हैं! देवों को वे भौतिक सुख भोगने ही पड़ते हैं। हाँ, कुछ देव सम्यग्दृष्टि होते हैं, वे भौतिक सुखों को अच्छा नहीं मानते हैं, सुखभोगों को अनर्थकारी मानते हैं, फिर भी वे सुखभोगों का त्याग नहीं कर सकते। देवगति ही ऐसी है। नरक के जीव दुःखों से मुक्त नहीं हो सकते हैं और स्वर्ग के जीव सुखों से मुक्त नहीं हो सकते हैं! पाप करना है और सुख भी चाहिए? सुख चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक, मिलेगा धर्म से ही। पापों से कभी भी सुख नहीं मिलता। पापों से दुःख ही मिलेंगे। क्या चाहिए आपको? सुख चाहिए न? तो पापों का त्याग तो करना ही पड़ेगा। पाप करना है और सुख पाना है-क्यों? पापों का त्याग नहीं करना है और दुःखों से बचना है-नहीं? ऐसा संभव ही नहीं। भौतिक सुख पाने के लिए भी पापों का त्याग तो करना For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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