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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२४ ३२६ ५. जो गृहस्थ स्त्री या पुरुष दानधर्म-शीलधर्म-तपधर्म और भावधर्म की श्रद्धा से आराधना करते हैं - वे भी हमारी प्रमोद-भावना के विषय हैं। ६. जो साध्वीजी अपने शील को सुरक्षित रखती हैं और ज्ञान-ध्यान में तन्मय रहती हुई गर्वरहित चित्त से मोक्षमार्ग की आराधना करती हैं-वे भी हमारे प्रमोद-भावना की पात्र हैं। ७. जिनको सम्यकदर्शन-गुण प्राप्त नहीं हुआ है परन्तु जो परमार्थपरोपकार एवं संतोष वगैरह मार्गानुसारी जीवन के गुणों के भंडार हैं, वे भी प्रमोद-भावना के विषय है। गुणदृष्टि में थोड़ासा परिभ्रमण करने अपने मन को ले चलो। इस परिभ्रमण में मन आनन्द का अनुभव करेगा। सच्चे और सात्विक आनन्द की अनुभूति होगी। करनी है ऐसी अनुभूति? नहीं! दोषदृष्टि और दोषसृष्टि! दोषसृष्टि में भटकना ही अच्छा लगता है, इसमें ही मजा आता है! ध्यान रखना, यह मजा क्षणिक है, सजा बहुत लम्बी है। गुणवानों से प्रेम नहीं किया, गुणवानों से द्वेष किया तो दुर्गति में 'ट्रान्सफर' हो जाओगे | कुत्ते, बिल्ली का भव मिल जाएगा। गुणद्वेषी ज्यादातर श्वानयोनि में जाते हैं! गुणप्रेमी सद्गति में जाते हैं। देवत्व या मनुष्यत्व प्राप्त होता है। सभा में से : आप गुणराग की बात करते हैं, परन्तु आप तो हमारे दोष बताते रहते हैं। गुणानुरागी भी दोष देखेगा पर अलग ढंग से : महाराजश्री : सच्ची बात है आपकी! आपके प्रति गुणानुराग है इसलिए दोष बताता हूँ। आपके दोष दूर हो जायें और आपकी गुणसमृद्धि बढ़ती जाय इसलिए दोष बताता हूँ। आप में जो जो गुण हैं, मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ, आप में जो जो दोष हैं, उन दोषों को दूर करने के लिए दोष बताता हूँ| दोष बताये बिना आप दोष कैसे दूर करेंगे? आपके प्रति प्रेम नहीं होता तो दोष नहीं बताता। आप गृहस्थ हैं और मैं साधु हूँ, साधु भी गृहस्थों के गुणों का प्रशंसक होता है । महान् आचार्यों ने गुणवान गृहस्थों के भव्य चरित्र लिखे हैं। कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने राजा कुमारपाल का जीवनचरित्र लिखा है। कुमारपाल की गुणदृष्टि बताई है। कुमारपाल के अनेक गुणों की बहुत प्रशंसा की है। साथ में सूरिजी ने राजा के दोष भी बताये थे। परन्तु निन्दा करने की दृष्टि से नहीं, दोष दूर करने की दृष्टि से। ___ गुर्जरेश्वर कुमारपाल ने अनेक सत्कार्य किये थे, परन्तु अपने हजारों साधर्मिक बंधुओं के दुःखों के प्रति उसका ध्यान नहीं गया था। गुरुदेव For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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