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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ प्रवचन-२२ अनादि-अनन्त है वैसे संसार की बुराइयाँ भी अनादि-अनन्त हैं! बुराइयों का अन्त नहीं है। तीर्थंकरों ने और अनेक संत महात्माओं ने जीवों को बुराइयों से मुक्त करने का पुरुषार्थ किया है, कुछ जीवात्माएँ अवश्य बुराइयों से मुक्त भी हुई हैं। परन्तु बुराइयों का सर्वथा नाश नहीं हो पाया। यदि संसार में से बुराइयाँ चली जायें तो फिर संसार और मोक्ष में क्या अन्तर रहेगा? संसार बुराइयों से भरा हुआ है इसलिए दुःखमय है, मोक्ष में एक भी बुराई नहीं है इसलिए वहाँ एक भी दुःख नहीं है। जिन्दगी में कभी नहीं सुधरनेवाले लोग भी होते हैं : __ कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं कि ज्ञानी पुरुषों के उपदेश से उनकी बुराइयाँ दूर हो जाती है, अर्थात् उपदेश से सुधर जाते हैं। कुछ बुरे लोग ऐसे निमित्त मिलने पर सुधर जाते हैं। कुछ लोग स्वयं काल परिपक्व होने पर सुधरते हैं! कुछ लोग जिन्दगी में कभी नहीं सुधरते! बुराइयों का त्याग कभी नहीं करते...लाख उपदेश देने पर भी नहीं सुधरते! उत्तम निमित्त मिलने पर भी नहीं सुधरते! ऐसे नहीं सुधरनेवाले बुरे लोगों के प्रति माध्यस्थ्य-भावना से, उपेक्षा-भावना से देखना है, बोलना है और सोचना है। ऐसा करने से बुरे लोगों के प्रति भी रोष नहीं होगा, धिक्कार या तिरस्कार के भाव जाग्रत नहीं होंगे। अपना मन मलिन नहीं होगा। घृणा एवं नफरत से दूर रहो : संसार है, संसार में सभी प्रकार के लोग मिल सकते हैं। स्नेही और स्वजन के रूप में भी ऐसे लोग मिल सकते हैं। जब अपने संबंध में आया हुआ मनुष्य बुरे काम करता है, अविनय और मर्यादाभंग करता है, तो उसके प्रति शीघ्र द्वेष हो जाता है, शीघ्र रोष हो जाता है! मनुष्यमन की यह भी एक निर्बलता है। इस निर्बलता को मिटाया जा सकता है। इसका उपाय है माध्यस्थ्य-भावना! गलती तो बड़ों की भी होती है, अच्छे अच्छे विद्वानों की और महात्माओं की भी होती है, परन्तु जो अपनी गलती मानता है और गलती सुधारनेवालों के प्रति प्रेम, आदर और सद्भाव बनाये रखता है वह अपनी गलती सुधार भी लेता है। कुछ लोग अपनी गलती मानने को ही तैयार नहीं होते! 'मेरी भूल हो ही नहीं सकती... ऐसा मिथ्या अभिमान लिए फिरते हैं। ऐसे लोग, उनकी भूल बतानेवालों के प्रति गुस्सा करते हैं। गुरु हो तो भी गुस्सा करते हैं, तीर्थंकर हो For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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