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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- २१ २८५ नहीं देता। मिथ्यादृष्टि जीवों में रहे हुए दया, दान, शील, परमार्थ, परोपकार इत्यादि गुणों की अनुमोदना करने का विधान उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने भी किया है : 'थोड़लो पण गुण परतणो, तेह अनुमोदवा लाग रे...' गुणों को जहाँ भी देखो, अनुमोदना करो, यानी प्रसन्नता का अनुभव करो। पशु-पक्षी में भी गुण होते हैं। उसके विशेषज्ञ पुरुषों ने पशु-पक्षी के भी गुण बताए हैं। पशु-पक्षी के गुण देखे जा सकते हैं, मनुष्य के गुण नहीं! दुर्भाग्य है न? कुत्ते से प्रेम करनेवाली स्त्री, पति से द्वेष करती है ! घोड़े से प्रेम करनेवाला पुरुष अपनी पत्नी से द्वेष करता है ! कितनी विचित्रता है संसार की ? मिथ्यादृष्टि जीवात्मा का मिथ्यात्व देखकर, गलत मान्यताएँ जान कर भी उसके प्रति रोष नहीं करने का है। उसका मिथ्यात्व दूर करने की करुणापूर्ण भावना रखने की है। उसके गुणों के ऊपर दोषों का आवरण चढ़ाकर निन्दा करने की आदत छोड़ दो! छोड़ोगे? दूसरों के दोष, दूसरों के पाप देखने का पाप छोड़ोगे क्या? नहीं छोड़ोगे तो दुःखी हो जाओगे। 'शांतसुधारस' ग्रन्थ में उपाध्याय श्री विनयविजयजी ने भी मिथ्यादृष्टि जीवों में रहे हुए सत्य - संतोषादि गुणों की अनुमोदना की है : मिथ्यादृशामप्युकारसारम् संतोषसत्यादिगुणप्रसारम् । वदान्यता-वैनयिकप्रकारम् मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः ।। मिथ्यादृष्टि जीवों में ‘मार्गानुसारिता' हो सकती है। जैनदर्शन ने मार्गानुसारिता को आत्मविकास की प्रथम भूमिका बताई है। आत्मविकास की प्रथम भूमिका पर कोई भी जीवात्मा हो, उसकी मार्गानुसारिता अनुमोदनीय होती है। मार्गानुसारिता : 'एप्रोच रोड' : सभा में से : ‘मार्गानुसारिता' का अर्थ क्या? महाराजश्री : मार्ग + अनुसारिता = मार्गानुसारिता! मार्ग यानी मोक्षमार्ग । मोक्षमार्ग है सम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्र्यात्मक । उस मार्ग की ओर ले जानेवाले गुणों को मार्गानुसारिता कहते हैं। नेशनल हाई-वे - राजपथ होता है न ? उस सड़क तक पहुँचनेवाला 'एप्रोच रोड़' नहीं होता? मार्गानुसारिता 'एप्रोच रोड़' है! मोक्षमार्ग तक पहुँचानेवाला मार्ग! इस मार्ग पर आये हुए जीवों में ३५ प्रकार के गुणों में से अनेक गुण होते हैं । जानते हो न ३५ प्रकार के गुण ? इसी For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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