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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ प्रवचन-२१ ईर्ष्या गलत काम करवाती है : हनुमानजी की माता अंजना का पूर्वभव आप जानते हो क्या? पूर्वजन्म में वह एक राजा की कनकोदरी नाम की रानी थी। राजा की दूसरी भी एक रानी थी, उसका नाम लक्ष्मीवती था। लक्ष्मीवती परमात्मभक्त थी। उसने अपने महल में एक छोटा-सा परन्तु सुन्दर कलात्मक जिनमंदिर बनाया था। प्रतिदिन नगर की अनेक महिलाओं के साथ वह मंदिर में पूजापाठ व गीतगान करती थी। मंदिर की वजह से अनेक महिलाएँ उसके महल में आती जाती थीं। रात को भी देर तक लक्ष्मीवती के महल में परमात्मभक्ति होती रहती थी! नगर में लक्ष्मीवती की कीर्ति बढ़ती जाती थी। कनकोदरी ईर्ष्या से जलती थी! लक्ष्मीवती की प्रशंसा वह सुन नहीं सकती थी। लक्ष्मीवती का सुख, उसका आनन्द कनकोदरी के लिए असह्य बन गया। उसने लक्ष्मीवती का सुख छीन लेने का उपाय सोचा। एक अधम विचार उसके मन में आया। अपनी एक विश्वासपात्र दासी को अपना विचार बताया । दासी सम्मत हो गई। __लक्ष्मीवती के जिनमंदिर में से परमात्मा जिनेश्वरदेव की मूर्ति को ही वहाँ से चुरा कर, ऐसी जगह डाल देने की योजना बनाई कि मूर्ति किसी के हाथ नहीं लगे | कनकोदरी ने सोचा था कि 'लक्ष्मीवती के महल में अनेक महिलाओं की चहल-पहल इस मंदिर की वजह से है। मंदिर भी तब तक है, जब तक भगवान की मूर्ति है। यदि मूर्ति को ही गायब कर दें तो मंदिर का कोई महत्त्व नहीं रहता! फिर लोगों का आना-जाना बंद हो जाएगा। "लक्ष्मीवती के महल में इतनी चहल-पहल और मेरे महल में कोई नहीं? लक्ष्मीवती की इतनी प्रशंसा और मेरी कोई प्रशंसा नहीं!' ईर्ष्याजन्य ये विचार कनकोदरी के हृदय को जला रहे थे। उसने एक दिन तीव्र द्वेष से परमात्मा की मूर्ति की चोरी करवाई और नगर के बाहर कूड़े-कचरे के ढेर में गाड़ देने के लिए वह स्वयं चल दी। उस ने नगर के बाहर आकर, कूड़े-कचरे के ढेर में परमात्मा की पूजनीय प्रतिमा को गाड़ दिया। __परन्तु वहाँ अचानक एक साध्वी का संयोग मिल गया रानी को । विहार कर के आ रही थी साध्वीजी। उन्होंने रानी की आँखों में भय और आशंका देखी। उन्होंने सोचा कि 'इसने कोई बुरा काम किया है।' दूर से साध्वीजी ने देखा भी था कि यह स्त्री कचरे के ढेर में कुछ गाड़ रही है।' उन्होंने रानी से पूछा : 'बहन, तू यहाँ क्या कर रही थी? इस कचरे के ढेर में तूने क्या छिपाया है!' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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