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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ प्रवचन-२ से धन मिलता है'-यह विश्वास है। झूठा विश्वास नहीं है, सच्चा विश्वास है! हरिभद्रसूरिजी जैसे महान ज्ञानी आचार्य कहते हैं कि धर्म धन देता है! गूर्जरेश्वर कुमारपाल के पूर्व जन्म का वृत्तांत पढ़ने को मिलता है। पूर्व जन्म में नौकर था। एक श्रीमंत परमात्म-भक्त सेठ के वहाँ नौकर था। सेठ रोजाना परमात्मा की पूजा करते थे। एक दिन इस नौकर को भी परमात्मा की पूजा करने की इच्छा हुई। उसने अपने पैसों से पुष्प खरीदे और भावपूर्वक पूजा की। इस परमात्मपूजा के धर्म से उसको गुजरात का साम्राज्य मिला! धर्म से धन नही मिला तो क्या मिला? मिला न धन? परन्तु एक बात याद रखना। उस नौकर ने परमात्मपूजा का धर्म किया था निष्काम भावना से | धन पाने की इच्छा से पूजा नहीं की थी। यही रहस्य है धर्मतत्त्व का! मेरे खयाल से तो यदि वह पूजा का धर्म कर के धन माँगता, तो उसे गुजरात का राज्य नहीं मिलता! मिल जाती थोड़ी संपत्ति...थोड़ी जमीन या पैसे । धर्म की ताकत : धर्म की शक्ति क्या है, कितनी है, यह बताया जा रहा है। आप इस बात पर ध्यान केन्द्रित करना । अभी दूसरी उलझन में नहीं फँसना | जैसे धर्म धन दे सकता है वैसे भोगसुख भी धर्म देता है। धन मिलना एक बात है, भोगसुख मिलना अलग बात है। जो धनवान होते हैं उनको भोगसुख मिले ही, ऐसा कोई नियम नहीं है | धनवान है परन्तु बीमार ही रहता है! पाँच इन्द्रिय के प्रिय विषयों का उपभोग कैसे करेगा? ऐसे धनवान क्या आप लोगों ने नहीं देखे हैं कि जो अँधे हैं, जो पक्षाघात से, 'पेरेलेसीस' से पीड़ित हैं, सुन नहीं सकते, चल नहीं सकते, केन्सर हो गया हो। ऐसे श्रीमन्त प्रिय विषयों का उपभोग नहीं कर सकते। शरीर निरोगी होना, पाँचों इन्द्रियों का अखंड और कार्यशील होना धर्म की ही देन है। मानते हो न? कल का ग्वाला-आज का शालिभद्र : प्रश्न : निरोगी शरीर और इन्द्रियों की पूर्णता पुण्यकर्म की देन है न? उत्तर : पुण्यकर्म किसकी देन है? पुण्यकर्म का बन्ध कैसे होता है? पापाचरण से या धर्माचरण से? धर्म से ही पुण्यकर्म बंधता है। इसका अर्थ क्या? जो पुण्यकर्म से मिलता है वह धर्म की ही देन है। इसका अर्थ यह है कि भोगसुख पाने के साधन-निरोगी शरीर, इन्द्रिय, मन... वगैरह धर्म से ही मिलते हैं | जो मिला है वह धर्म का ही फल है और भविष्य में जो मिलेगा वह For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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