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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२१ २७६ दोनों शब्द 'मुद्' धातु से बने हैं। दोनों का अर्थ होता है खुशी! दूसरों का सुख देखकर खुशी का अनुभव करना यह है मुदिता-भावना। ___'परसुखतुष्टिर्मुदिता आप लोग अपने सुख में संतुष्ट हैं या दूसरों के सुख में संतुष्ट? सभा में से : अपने ही सुख में संतुष्ट, प्रसन्न! दूसरों का सुख देख कर तो ईर्ष्या होती है। महाराजश्री : हृदय को बदलो। अनन्त-अनन्त काल से जीव संसार में भटक रहा है, इसका कारण भी यही है! वह अपने ही सुख का विचार करता है, अपने ही दुःखों का विचार करता है। इस स्वार्थ ने ही जीव को पापी बनाया है और संसार में भटकाया है। स्वार्थी ईर्ष्यालु तो होगा ही। पुण्यानुबंधी पुण्योदयवालों के प्रति : जिस प्रकार अरिहंत परमात्मा एवं सिद्ध भगवन्तों का शाश्वत् सुख जान कर, उनके प्रति प्रमोद-भावना रखने की है उस प्रकार, जो जीव इस संसार में पुण्यानुबंधी पुण्य के उदय से, देवभव में या मनुष्यभव में सुख पाते हैं, सुख का उपभोग करते हैं, उनके प्रति भी प्रमोद भाव ही रखने का है। 'इतना इतना भौतिक-वैषयिक सुख मिला है, फिर भी ये इसमें आसक्त नहीं बनते! बहुत ही अलिप्त से रहते हैं | धन्य है इन्हें ।' हृदय उनके प्रति सद्भावनावाला बन जाय | पुण्यानुबंधी पुण्य के उदय से जो सुख मिलता है, उस सुख में जीव निमग्न नहीं बनता है। अति आसक्त नहीं बनता है | पुण्यानुबंधी पुण्य के उदय से मिलनेवाले सुखों में मनुष्य पाप नहीं करता है परन्तु नया पुण्य बांधता है। पुण्य बंधता है धर्म के आचरण से । भरपूर सुख पास होने पर भी जो जीवात्मा धर्म का आचरण करता है, उनके प्रति आपके हृदय में प्रेम हो सकता क्या? होना चाहिए प्रेम। जिस प्रकार दूसरों के कल्याणकारी सुख देखकर हृदय आनन्दित होना चाहिए वैसे आपके पास भी वैसे सुख हों कि जो सुख आपको पापों की ओर प्रेरित नहीं करते हों, आपको खुश होना चाहिए। सुख के अनेक साधन होने पर भी उसका अमर्यादित उपभोग नहीं करते हो, दुरूपयोग नहीं करते हो, तो समझना कि आपके पास पुण्यानुबंधी पुण्य का उदय है। मोक्षमार्ग की आराधना में यह पुण्योदय ही सहायक सिद्ध होता है। जितना भी पुण्योदय हो, उसमें For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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