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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२० २६१ दिन आपके जीवन में धर्मतत्त्व जीवंत बन ही जाएगा। आपके जीवन-शरीर पर धर्म के अलंकार झगमगा उठेंगे ही। आपके मन-वचन और काया पर धर्म की शोभा बिखर जायेगी। आपके विचार धर्ममय बनेंगे, आपकी वाणी में धर्मतत्त्व का रणकार होगा, आपके प्रत्येक आचरण में धर्म का प्रबल असर होगा। आप अपूर्व शान्ति और आनंद पायेंगे। यदि, पूर्वजन्मों का पुण्यकर्म उतना संचित नहीं होगा तो आपको बाह्य भौतिक सुख कम मिलेंगे, परन्तु जीवन में धर्मतत्त्व को स्थान दे दिया है तो आन्तरिक शांति और आत्मानन्द अपूर्व मिलेगा। सुख जितना महत्त्वपूर्ण नहीं है, उतनी शांति महत्त्वपूर्ण है। सुख जितना अनिवार्य नहीं है, उतना आत्मानन्द अनिवार्य है। शान्ति और आनन्द है तो सारे विश्व के सुख आपके पास हैं-ऐसा मानो | मानोगे आप लोग? भौतिक सुखों के पीछे पागल बनकर भटकनेवालो, आप शान्ति और आत्मानन्द का मूल्यांकन कर सकोगे?: प्रमोदभाव क्यों नहीं है? ___ अच्छा, आज मुझे प्रमोदभावना के विषयभूत विश्व के श्रेष्ठ गुणवाले महापुरुषों का परिचय कराना है। आपको जब उनका परिचय होगा, तो आपकी विचारसृष्टि बदल जाएगी। आपको लगेगा कि इस विराट विश्व में अनन्त-अनन्त गुणों से भरपूर महान आत्माओं का अस्तित्व है। आप केवल अपने इर्दगिर्द ही देखते हो, आपकी दुनिया बहुत छोटी है। छोटी दुनिया में भी देखते हो छोटी दृष्टि से, छोटे हृदय से! इसलिए प्रमोदभावना से वंचित रहे हो। प्रमोद यानी प्रेम : जिनके गुणों का स्मरण कर अपने खुशी से, आनन्द से भर जायें, अपना हृदय गद्गद् हो जाये, अपनी अन्तरात्मा भावविभोर बन जाये, यह 'प्रमोदभावना' है। उन उच्चतम विभूतियों के प्रति गुणों के माध्यम से 'प्रेम' हो जाना चाहिए। एक विद्वान महात्मा ने 'प्रमोद' का अर्थ अंग्रेजी में Love प्रेम किया है! मुझे यह अर्थ पसंद आ गया | गुणों के माध्यम से श्रेष्ठ विभूतियों के प्रति प्रेम करना दुनिया में अज्ञानी और मोहान्ध जीव स्वार्थ के माध्यम से ही एक दुसरे के साथ प्रेम-चेष्टा करते दिखाई देते हैं। प्रेम...प्रेम तो सब करते हैं, बोलते हैं, परन्तु वह प्रेम नहीं होता, प्रेम का आभासमात्र होता है, स्वार्थ की बदबू से भरी For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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