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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१८ २३९ होना चाहिए कि चोरी करने से कैसा पापकर्म बंधता है और जब वह पापकर्म उदय में आता है तब कैसे कैसे दुःख जीव को सहन करने पड़ते हैं। यह ज्ञान होगा तो चोरी करनेवाले के प्रति रोष नहीं आयेगा, करुणा आयेगी। उसको चोरी से मुक्त करने का विचार आयेगा। चोर के प्रति भी करुणा : एक सत्य घटना : _लन्दन में एक घटना बनी थी। एक युवान रात्रि के समय चोरी करने निकला | एक स्ट्रीट में से वह गुजरता है। पुलिस को शंका हो गई कि 'यह चोर होना चाहिए।' पुलिस सतर्क हो गई। वह युवान भी समझ गया। पुलिस से बचने के लिए वह एक चर्च में घुस गया। चर्च खुल्ला था। चर्च में उसने देखा कि धर्मगुरु अपने कुछ अतिथियों के साथ बैठे वार्तालाप कर रहे थे। वह भी वहाँ एक कुर्सी पर बैठ गया। टेबल पर चाय के बरतन पड़े थे। नौकर ने इस युवक को भी चाय का कप दिया | धर्मगुरु की नजर इस युवक के ऊपर नहीं थी, वह तो अपनी बातों में लीन थे। टेबल पर जो कप पड़े थे, चांदी के थे। उस युवक का मन ललचाया! चोरी करने तो निकला ही था...अवसर... 'चान्स' मिल गया! जब धर्मगुरु अपने मित्रो के साथ वहाँ से उठकर दूसरे कमरे में चला गया, इस युवक ने अपने कोट की बड़ी-बड़ी जेबों में कप भर लिए और शीघ्र ही चर्च से बाहर निकल गया । परन्तु बाहर तो पुलिस इसका इन्तजार कर ही रही थी! युवक पकड़ा गया। पुलिस ने उसको 'कस्टडी' में बंद कर दिया । चोरी का माल उसकी जेबों से पकड़ा गया। दूसरे दिन उसको न्यायाधीश के सामने खड़ा कर दिया गया। पुलिस ने कहा : 'यह चोर है, चर्च में से इसने चांदी के कप चुराए हैं, ये रहे सारे कप।' यूँ कहकर पुलिस ने सब कप कोर्ट में प्रस्तुत किये | कप के ऊपर उस चर्च का नाम था, जहाँ से इसने चोरी की थी। धर्मगुरु को कोर्ट में बुलाया गया। न्यायाधीश ने पूछा : 'क्या आपके वहाँ से कपों की चोरी हुई है? यह युवक कल रात चर्च में आया था? आपने देखा था?' धर्मगुरु ने युवक के सामने देखा । न्यायाधीश को कहा : 'यह युवक चोर नहीं है, यह तो मेरा मेहमान है! रात को यह मेरे चर्च में आया था, मैंने ये सारे कप उसको भेंट दिये थे! उसको चोर समझ कर पकड़ लिया गया, इससे मुझे बहुत दुःख हुआ है। मैं विनती करता हूँ कि इसको मुक्त कर दिया जाय। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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