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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२७ प्रवचन-१७ सच्ची और अच्छी बात भी सब नहीं मानते : ___ नमि राजा साध्वीमाता की बात नहीं मानता है! 'कुछ भी हो मैं तो युद्ध करूँगा ही, मेरा हाथी लेकर रहूँगा!' उसने साध्वीजी को अपना निर्णय सुना दिया | अच्छी बात सभी मान लें, ऐसा कोई नियम नहीं है। माता-साध्वी की सच्ची और अच्छी बात भी पुत्र मान ले, यह कोई नियम नहीं है। जब मनुष्य का हृदय कठोर होता है, कोमलता नहीं होती है, तो सच्ची और अच्छी बात भी वह नहीं मानेगा। सच्ची और अच्छी बात करनेवाले के प्रति स्नेह, श्रद्धा और भक्ति नहीं होगी तो भी वह बात नहीं स्वीकारेगा। दुनिया में ज्यादातर लोग ऐसे हैं कि जो सच्ची और अच्छी बात का स्वीकार नहीं करते! ज्ञानी पुरुषों को, सज्जनों को संत पुरुषों को जो अच्छी लगती है, सच्ची लगती है, वह बात अज्ञानी और दुर्जनों को, अच्छी नहीं लगती! सच्ची नहीं लगती है। कभी-कभी अपने मन में ऐसा विचार आ जाता है कि 'कितनी अच्छी बात मैं कहता हूँ, कितनी सच्ची बात मैं कहता हूँ, कितनी कल्याणकारिणी बात है... फिर भी ये लोग नहीं मानते हैं... कैसे हैं ये लोग?' अपने मन में अफसोस भी होता है! परन्तु अफसोस करने की आवश्यकता नहीं है। नहीं माननेवालों के प्रति द्वेष या रोष करने की जरूरत नहीं है। ऐसे लोग करुणा पात्र हैं। राजा चन्द्रयश नमि के पास : साध्वी मदनरेखा ने नमि राजा के प्रति रोष नहीं किया! तू मेरा पुत्र है और मेरी बात नहीं मानता है?' गुस्सा नहीं किया। साध्वीजी ने बड़े पुत्र के पास जाने का सोचा | बड़ा पुत्र चन्द्रयश तो माता को अच्छी तरह पहचानता था। साध्वीजी नगर में चली गई। चन्द्रयश माता साध्वी को देखते ही प्रसन्न हो गया! माता और साध्वी! विनय से स्वागत किया, आनन्द से गद्गद् चन्द्रयश जमीन पर बैठ गया और साध्वीजी की कुशलता पूछी। साध्वीजी ने भी अपनी सारी कहानी सुना दी चन्द्रयश को। जब उसने सुना कि उसका छोटा भाई भी है, तुरंत ही पूछ लिया : 'अभी मेरा वह भाई कहाँ है?' साध्वी ने कहा : 'नगर को घेर के खड़ा है वह नमि राजा ही तेरा लघु भ्राता है!' चन्द्रयश आश्चर्य से साध्वीजी को देखता ही रह गया। 'क्या बात कहती हो? नमि राजा मेरा सहोदर है? मैं अभी उसके पास जाता हूँ।' चन्द्रयश का हृदय अपने छोटे भाई को मिलने के लिए अत्यंत For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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