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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २११ प्रवचन-१६ में वह लड़के को मिठाई खिला देती है! इसको अज्ञानमूलक, मोहजन्य करुणा कहते हैं। माता को ज्ञान नहीं कि 'मिठाई खाने से लड़के का बुखार बढ़ जाएगा, बीमारी बढ़ जाएगी।' स्वास्थ्यविषयक अज्ञानता के कारण वह खिला देती है मिठाई! है यह करुणा, पर मोहजन्य! लड़का मिठाई के लिए रोता है, माँ के हृदय में दया आ जाती है! दया से खिला देती है मिठाई! २. असुखकरुणा : __ असुख यानी दु:ख | जिसके पास सुख के साधन नहीं हैं, रहने को घर नहीं है, पहनने को वस्त्र नहीं है, खाने को अन्न नहीं है... ऐसे मनुष्यों को मकान, वस्त्र, भोजन आदि देना, करुणा का दूसरा प्रकार है। वैसे ही कोई बीमार है, उसको दवाई देना, सेवा करना, किसी को संकट में सहायता करना, उपद्रव से मुक्त करना... वगैरह करुणा के दूसरे प्रकार में समाविष्ट होता है। ३. संवेगकरुणा : ___ संवेग का अर्थ होता है मोक्ष की अभिलाषा । जिस पुरुष में ऐसी मोक्षाभिलाषा पैदा हुई हो, वह यह चाहता है कि 'मैं अकेला ही मोक्ष में जाऊँ इससे क्या, सब जीव मोक्ष पाएँ... परम सुख, परमानन्द, परम शान्ति प्राप्त करें तो बहुत अच्छा!' ऐसे महानुभावों में, संसार के भौतिक सुखों से समृद्ध जीवों के प्रति भी करुणा होती है : 'ये बेचारे संसार के सुखों में लीन हो जायेंगे, राग-रंग और भोगविलास में डूब जायेंगे तो इनकी दुर्गति हो जाएगी, भविष्य में दुःखीदुःखी हो जायेंगे। मैं उनको इन क्षणिक सुखों के त्यागी बना दूँ अथवा मैं चाहता हूँ कि वे इन सुखों के त्यागी बनें!' ४. अन्यहितकरुणा : इस करुणा का क्षेत्र विशाल है। सर्व जीवों के प्रति हितकामना! सर्व जीवों के प्रति अनुकंपा... अनुग्रहशीलता। प्रीतिजन्य, स्नेहजन्य कोई संबंध के कारण करुणा नहीं अपितु सर्व जीवों के प्रति सहज, स्वाभाविक करुणा । मोहजन्य करुणा का मैंने आपको उदाहरण एक ही दिया है, ऐसे अनेक उदाहरण हैं इसके | यह करुणा उपादेय नहीं है। ऐसी करुणा से दूसरे जीवों का हित नहीं होता है, अहित होता है। दूसरे जीव सुखी नहीं बनते, दुःखी बनते हैं। इसलिए करुणा ज्ञानजन्या होनी चाहिए। अपने उपाय से सामनेवाला जीव सुखी बनेगा या दुःखी, इसका ज्ञान होना चाहिए अपने को। दुःख दूर For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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