SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१५ २०३ 'पूर्वजन्म का स्नेह! पूर्वजन्म में दो राजकुमार थे, दोनों मरकर देवलोक में देव हुए। देवलोक का आयुष्य पूर्ण होने पर एक मिथिला का राजा पद्मरथ हुआ, दूसरा तेरा पुत्र हुआ। राजा पद्मरथ को उसका अश्व ही उस जंगल में ले गया था। वहाँ उसने तेरे पुत्र को देखा, पूर्वजन्म का स्नेह जाग्रत हुआ और वह ले गया उसे अपने साथ ।' जन्म-जन्मान्तर के स्नेह और द्वेष वर्तमान जीवन के स्नेह और द्वेष में निमित्त बनते हैं। कभी-कभी ऐसा अनुभव आप लोगों को भी होता होगा कि जिसको आप पहचानते भी न होंगे, कभी उनसे आप मिले भी नहीं होंगे, उनके बारे में अच्छी-बुरी बात भी सुनी नहीं होगी और आज उसको देखते ही स्नेह हो जाय! अथवा अरुचि-द्वेष हो जाय! प्रत्यक्ष कोई भी कारण न दिखता हो, फिर भी सहज राग-द्वेष हो जाते हैं, वहाँ पूर्वजन्म के राग-द्वेष ही प्रमुख कारण होते हैं। वैसे, नये राग-द्वेष का प्रारंभ भी इस जीवन में हो सकता है। एक और नई घटना : तीन अनिच्छनीय घटनाएँ और तीन अच्छी घटनाएँ दो-तीन दिनों में ही हो गईं। अब एक नई रोमांचकारी घटना उसी नन्दीश्वरद्वीप पर बनती है। मदनरेखा और मणिप्रभ महामुनि मणिचूड़ के पास बैठे हैं और अचानक आकाशमार्ग से एक देदीप्यमान विमान वहाँ उतर आता है। मणिप्रभ और मदनरेखा उस विमान की ओर देखते हैं। एक दिव्य कान्तिवाला देवपुरुष विमान से बाहर आया । अनेक आभूषणों से उसकी देह सुशोभित थी। जमीन पर उसके पैर टिके हुए नहीं थे। गले में सुगंधित पुष्पों की सुन्दर माला थी। उसके पीछे पीछे विमान में से अनेक देवांगनाएँ उतर आई । देवांगनाओं ने उतरते ही गीत और नृत्य का प्रारंभ कर दिया । गाते और नाचते वे सब महामुनि मणिचूड़ के पास आ रहे थे। मदनरेखा के लिए यह दृश्य नया-नया ही था। मणिप्रभ राजा विद्याधर होने से और नन्दीश्वरद्वीप पर पहले भी आया हुआ था, इसलिए यह दृश्य उसके लिए नया नहीं था। नन्दीश्वरद्वीप देवों का ही तीर्थस्थान है। पर्व दिनों में देव-देवी इस द्वीप पर आते रहते हैं और परमात्मभक्ति का महोत्सव मनाते रहते हैं। देव-देवियों को तो मणिप्रभ ने देखा ही था, उसके लिए कोई बड़ा आश्चर्य नहीं था, परन्तु एक नया आश्चर्य उसको भी देखने को मिल गया। उस भव्य देहाकृतिवाले देव ने महामुनि के पास आकर, सर्व प्रथम मदनरेखा को प्रणाम For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy