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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१५ २०१ ___ सभा में से : क्या ऐसे ज्ञानी पुरुष हमारे व्यापार की तेजी-मंदी भी बता देते हैं? [सभा में जोरदार हँसी!] साधुपुरुषों के पास क्या मांगोगे? महाराजश्री : आप लोगों की दृष्टि कमाल की है! दिव्य ज्ञानी पुरुषों से भी पैसे कमाने के ही रास्ते जानने की तमन्ना! मेरे खयाल से आपको लगे कि 'फलाँ ज्ञानी पुरुष... साधुपुरुष अच्छे ज्योतिष के ज्ञानी हैं, तो उनका उपयोग ऐसा ही करो! सभा में से : उनके पीछे गाड़ियाँ लेकर घूमते हैं। महाराजश्री : भले घूमें, परन्तु यदि वे ज्ञानी पुरुष वास्तव में साधुपुरुष होंगे, परमात्मा जिनेश्वर के शासन के सच्चे अनुरागी होंगे तो वे आपकी अर्थ-काम की इच्छाओं को पूर्ण करने में सहयोगी नहीं बनेंगे। वे तो आपकी अर्थलोलुपता को, कामपरवशता को मिटाने का ही उपदेश देंगे। हाँ, वेश साधु का पहना हो और काम डाकू का करते हों, उनकी बात जाने दो। ऐसे वेशधारी साधु भी होते हैं। उनको ऐसे स्वार्थी और लोभी लोग मिल भी जाते हैं। दुनिया में मूर्ख लोग ही ज्यादा हैं। धूर्तों को ऐसे मूर्ख लोग मिल जाते हैं। आप लोगों को तो ऐसा कोई धूर्त नहीं मिल गया है न? दिमाग ठिकाने रखना, अन्यथा धर्म के नाम पर पाप में डूब जाओगे। कभी भी साधुपुरुषों से अर्थ-काम की प्राप्ति की अभिलाषा नहीं करना। कोई साधु ऐसी बातें करें तो उनको विनय से कह देना कि : 'महाराज साहब, हमको आपसे पैसे नहीं चाहिए, लड़के नहीं चाहिए, हमें तो आपसे मोक्षमार्ग का ज्ञान चाहिए, सम्यक-दर्शन और सम्यक्-चरित्र चाहिए | आप तो हमें ऐसी प्रेरणा दो कि इस अर्थ-काम की लोलुपता मिट जायँ, वासनाएँ मर जाएँ... और हम मोक्षमार्ग के आराधक बनें।' मणिचूड़ महामुनि उच्चकोटि के महात्मा पुरुष थे। उन्होंने अपने ज्ञानबल से मदनरेखा का भूतकाल जान लिया और अपने पुत्र के मन की इच्छा भी जान ली। मणिप्रभ कुछ पूछे, इससे पूर्व ही महामुनि ने मणिप्रभ से कहा : राजा मणिप्रभ की आँखें खुली : _ 'मणिप्रभ, तू जिस नारी को लेकर यहाँ आया है, वह एक महासती स्त्री है। अपने शीलधर्म की रक्षा के लिए तो उसने महल छोड़ा है, पुत्र को छोड़ा है और अपने प्राणों को भी छोड़ सकती है। वत्स, यह महासती स्वर्गस्थ For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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