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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१४ १९० ५. निमित्तकारण का विचार करो! ६. दुष्कृतगर्दा करो! ७. सब जीवों से क्षमापना करो! ८. चार शरण का स्वीकार करो! ९. नमस्कार मंत्र का स्मरण करो! १०. अट्ठारह पापस्थानों का त्याग करो! ११. चौबीस तीर्थंकरों का ध्यान करो! लंबा उपदेश देने का समय नहीं था। बुद्धिमान पुरुष को लंबा उपदेश देने की जरूरत भी नहीं होती है। ऐसे गंभीर प्रसंग में तो लंबा उपदेश देना ही नहीं चाहिए। पुत्र चन्द्रयश वैद्यों को लेकर आया था, वैद्यों ने घाव साफ करके पट्टी बाँध दी थी, परन्तु खून काफी बह गया था। युगबाहु का शरीर ठंडा पड़ता जा रहा था । मदनरेखा मधुर, कोमल और गद्गद् स्वर में श्री नमस्कार महामंत्र सुनाती रहती है। चार शरण अंगीकार करवाती है। अरिहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवलिपन्नतं धम्म सरणं पवज्जामि... युगबाहु की मृत्यु : युगबाहु के चेहरे पर एकदम समता छा गई थी। कषाय उपशान्त हो गए थे। नमस्कार मंत्र के स्मरण में लीनता प्राप्त हो गई थी और उसने प्राणों का त्याग कर दिया । अनन्त का प्रवासी एक धर्मशाला छोड़कर अपनी मंजिल की ओर उड़ गया। जब मदनरेखा को मालूम पड़ा, वह स्वस्थता खो बैठी, फूटफूटकर रोने लगी। पुत्र चन्द्रयश भी करुण कल्पांत करने लगा। ___ मदनरेखा आखिर तो राग के बंधन में बंधी हुई एक नारी तो थी ही! गुणवान, रूपवान और बलवान पति का वियोग मदनरेखा को रुला दे, इसमें कोई आश्चर्य नहीं! संयोग में सुखानुभाव करनेवालों को वियोग में रोना पड़ता ही है। हम लोग तो साधु हैं न? परन्तु हमने भी किसी के संयोग में सुख माना, तो वियोग में रुदन करेंगे ही! भले ही हमारा राग प्रशस्त हो! प्रशस्त राग भी रुलाता है! गौतमस्वामी का क्या हुआ था? जानते हो न कि For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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