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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ११ १४७ मूर्ति क्यों रखी है ? क्या आपको दर्शन करने में, पूजन करने में, आह्लाद आता है?' उन्होंने कहा : ‘यह मूर्ति बड़ी ही चमत्कारिक है, बहुत पुरानी है!' चमत्कार! आप लोगों को चमत्कार बतानेवाले भगवान पसंद आ जाते हैं! चमत्कार बतानेवाले गुरु पसंद आ जाते हैं और चमत्कार बतानेवाला धर्म पसंद आ जाता है। झोंपड़ी महल बन जाए, वैसा चमत्कार चाहिए न ? लोहा सोना बन जाए, वैसा चमत्कार चाहिए न ? पानी घी बन जाए, वैसा चमत्कार चाहिए न ? मूर्ति नयनरम्य हो या न हो, चमत्कारिक चाहिए ! मन कितना विकृत हो गया है लोगों का ? आप लोग परमात्मा के दर्शन करने जाते हो ? नहीं, आपके दर्शन परमात्मा को देने जाते हो! परमात्मा आपको देखे और चमत्कार कर दे, इसी उद्देश्य से जाते हो न ? हम प्रतिमा को भी बदसूरत बना डालते हैं : शिल्पी कितनी सुन्दर प्रतिमा बनाता है? अपने मन्दिरों में जब से प्रतिमा परमात्मा के रूप में प्रतिष्ठित होती है, तब से पुजारी लोग और आप लोग उस प्रतिमा को विकृत करते जा रहे हो । शिल्पी की बनाई हुई स्वाभाविक आँखें आपको पसंद नहीं आती हैं, आप जैसी तैसी काँच की आँखें लगा देते हो! जगह-जगह टीके लगाते हो। जगह-जगह सोने-चाँदी की पट्टियाँ लगाते हो...क्योंकि आपके मन में यह बात जमी हुई है कि 'एक तोला सोना मूर्ति पर मढ़ने से एक किलो मिलता है।' थोड़ा देकर ज्यादा पाने की बात है न आपकी? फिर सौन्दर्य की कल्पना ही कैसे आ सकती है ? 'परमात्मा की मूर्ति नयनरम्य, खूबसूरत होनी चाहिए, यह विचार भी शायद आप लोगों को नहीं आया होगा। आया है कभी ? कैसे तीर्थों में जाना पसंद करते हो? कहीं पर, किसी तीर्थस्थान में कोई ऐसी सौन्दर्यशाली प्रतिमा मिल जाए, क्या वहाँ पर भी आपने दर्शन करके अमृतसर का पान किया है? परमात्मा की दृष्टि में दृष्टि जुड़ गई है कभी? एकाध घंटा दर्शन में चला गया कभी? नीरव शान्ति हो, मन्दिर में कोई कोलाहल नहीं हो, चारों ओर प्रसन्नता और पवित्रता फैली हो...धूप की सुगन्ध और दीपक की ज्योति वातावरण को आह्लादक करती हो...ऐसे स्थान में कभी दर्शन और स्तवन में खो गए हो ? अपने आपको For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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