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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-११ १४५ है। धरती से फूटते झरने की तरह! टटोलो अपने हृदय को। हृदय में परमात्मा के प्रति प्रीति और भक्ति के भाव पड़े हैं? मयणासुन्दरी शादी के बाद, दूसरे दिन प्रातः जब भगवान ऋषभदेव के मंदिर में गई थी, उसका पति उँबर राणा भी साथ गया था, मयणासुन्दरी के हृदय में से कैसा स्तवन प्रगट हुआ था? जानते हो? प्रीतिपूर्ण हृदय से स्तवन प्रकट हुआ था, यह जानते हो? प्रीतिपूर्ण स्तवन ने वहाँ चमत्कार कर दिया था। परमात्मा के गले में पड़ी हुई पुष्पमाला मयणासुन्दरी के पास आ गई थी! स्तवन मयणा कर रही थी, सुनकर उँबर राणा का हृदय गद्गद् हो गया था। स्तवन करने की भी एक पद्धति होती है। सुननेवाला सुनकर भक्तिभाव में लीन हो जाय। उँबर राणा शायद पहली बार ही मन्दिर में आया था। परन्तु उसके हृदय में मयणासुन्दरी के प्रति गुणमूलक प्रीति हो गई थी। मयणा के त्याग और समर्पण ने उँबर राणा को आकर्षित कर दिया था। मयणा के प्रति आकर्षित उँबर राणा मयणा के स्तवन के प्रति भी आकर्षित हो गया। उस स्तवन में नहीं था कोई सुख पाने का अर्चन, नहीं थी कोई दुःखभय से मुक्त होने की याचना । परमात्मगुणों की स्मृति और कीर्तन! दर्शन कैसे करते हो? जिसके प्रति प्रीति होती है उसके दर्शन कितनी तल्लीनता से होते हैं, जानते हो? आँखों से आँखें मिलती हैं न? परमात्मा की आँखों में कुछ दिखता है? ऐसा दिखता है कि देखते ही रहें। आँखें हटे ही नहीं वहाँ से | पर हम देखें तो! एक परमात्मप्रेमी संस्कृत भाषा के महाकवि ने गाया है : ‘प्रशमरसनिमग्नं दृष्टियुग्मं प्रसन्नम्। कवि ने परमात्मा की आँखों में प्रशमरस देखा! प्रसन्नता देखी! आप लोगों ने परमात्मा की आँखों में क्या देखा? आपको खयाल भी है कि परमात्मा की आँखों में कुछ देखने योग्य है? संसारी जीवों की आँखों में जो नहीं दिखाई दे वैसा कुछ दिव्य तत्त्व परमात्मा की आँखों में दिखाई देता है। योगीश्वर आनन्दघनजी को भी वैसा कुछ दिखाई दिया था। वे आनन्द से नाच उठे थे, उनके मुँह से स्तवन के शब्द फूट पड़े थे, जैसे कि कली फूटती है पौधे पर! अमियभरी मूरति रची रे, उपमा न घटे कोय । शान्त सुधारस झीलती रे, निरखत तृप्ति न होय! विमल जिन! दीठाँ लोयण आज! For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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