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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० प्रवचन-११ लो! फिर 'फिटिंग' में देरी नहीं होगी! इसलिए ‘कनेक्शन' का 'प्रोसीजर' शुरू कर दो! हाँ, 'कनेक्शन' लेने का भी एक अच्छा ‘प्रोसीजर' है! परमात्मतत्त्व के साथ संबंध स्थापित करना है, मामूली बात नहीं है। सरल नहीं है। लेकिन आपका संकल्प होने के बाद कोई कठिनता नहीं होगी। संकल्प करके कार्य प्रारम्भ कर दो। चार भूमिकाएँ हैं संबंध स्थापित करने की। १. स्मरण २. दर्शन ३. स्तवन और ४. स्पर्शन | स्मरण व्यक्ति के अभाव में होता है। स्मरण व्यक्ति की अनुपस्थिति में होता है। स्मरण अच्छे का होता है वैसे बुरे का भी होता है। जिसके प्रति प्रेम होता है उसका स्मरण मधुरता पैदा करता है साथ में व्याकुलता भी! यह व्याकुलता भी मधुर होती है। इसमें उद्वेग नहीं होता है, संताप नहीं होता है। उत्तेजना होती है, विरहजन्य व्याकुलता होती है। सदेह परमात्मा का विरह है न हम को? प्रियतम परमात्मा के विरह की व्याकुलता अनुभव की है? विरहजन्य स्मरण का संवेदन हुआ है कभी? प्रेम बिना सब बेकार है : परमात्मा का स्मरण हो जाता है कि करना पड़ता है? ध्यान रहे कि स्मरण में संवेदन होता ही है। संवेदनशून्य स्मरण, स्मरण नहीं कहा जाता, वह तो मात्र होता है कोई स्वार्थसिद्धि का उपाय! 'परमात्मा का इतनी बार स्मरण करने से अमुक कार्य सिद्ध होता है,' ऐसा कुछ सुनकर आप हजारों या लाखों बार परमात्मा का नाम-स्मरण करो, उस स्मरण से मेरा सम्बन्ध नहीं है। जिसको परमात्मा से प्यार नहीं होता उसका परमात्मा के नाम का स्मरण प्रेमजन्य नहीं होता, स्वार्थजन्य होता है। परमात्मतत्त्व से प्रीति हो जाती है और उस तत्त्व से मिलने की तीव्र तमन्ना जाग्रत होती है, मिलन होता नहीं है, दर्शन होते नहीं है, तब दिन-रात उसके स्मरण में गुजरते हैं। कभी-कभी उस स्मरण में आँसू भी बह जाते हैं, मन बेचैन भी हो जाता है | सभा में से : ऐसा तो कभी नहीं हुआ! महाराजश्री : कैसे होगा? यह सब तो परमात्मप्रेमी के जीवन में होता है। आप लोग परमात्मप्रेमी हो? अरे, परमात्मा के नहीं, और किसी के भी प्रेमी हो क्या? सच्चे प्रेमी किसके हो? 'इमिटेशन प्रेम'...मात्र बनावटी प्रेम! वैसे में स्मरण किस का? दिखावटी प्रेम में प्रेमी का अभाव अखरता ही नहीं है। अभाव अखरे नहीं तो स्मरण होता नहीं! कभी याद आ जाना एक बात है, For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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