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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१० १२८ असंख्य दोष बताते हैं | आपके मन पर एक भी दोष की छाप रह गई तो समझ लो कि आपका संसार-राग खत्म! गुणदर्शन से राग, दोषदर्शन से विराग : सभा में से : तब तो आपके प्रवचन सुनने में खतरा है! आप संसार छुड़वा दोगे! ___ महाराजश्री : संसार में जो खतरा है, वह नहीं दिखता और इधर खतरा दिखता है इस महापुरुष को! संसार में कदम-कदम पर खतरा है, हर पल में खतरा है, जानते हो? हमारा कर्तव्य है कि हम लोगों को ऐसे खतरनाक संसार से मुक्त करें। इतना तो समझो कि यदि संसार दुःखपूर्ण और यातनापूर्ण नहीं होता तो हमने क्यों संसार छोड़ा होगा? संसार के सुख ही खतरनाक हैं। अनंत दोषों से भरा हुआ है यह संसार | आप लोग संसार में गुणदर्शन कर रहे हो इसलिए आपको संसार में आसक्ति है, मोह है। आप करते हो गुणदर्शन संसार में, हम करते हैं दोषदर्शन! गुणदर्शन से राग होता है, दोषदर्शन से विराग होता है। जटाशंकर अपने घर पर एक बालमंदिर जैसा चलाया करता था। किसी बच्चे से वह फीस नहीं लेता था। पैसा नहीं लेता था । बच्चे भी अपने घर में जब कभी मिठाई बनती, जटाशंकर के लिए प्रसाद ले आते । एक लड़का ऐसा आता था कि जो कभी भी जटाशंकर के लिए प्रसाद नहीं लाया । जटाशंकर की नजर में तो वह आ ही गया था, परन्तु उसने लड़के को कुछ भी नहीं कहा । एक दिन की बात है। वह मास्टरजी के लिए मिट्टी के कुंडे में खीर ले आया | लड़के ने जटाशंकर से कहा : 'आज मेरे छोटे भैया का जन्मदिन है इसलिए मेरी मम्मी ने खीर बनाई थी! आपके लिए इतनी भेजी है।' जटाशंकर खुश हो गया! उसने तो वहीं पर बच्चों के सामने ही खीर पीना शुरू कर दिया। आधा कुंडा खीर पीने के बाद जटाशंकर ने उस लड़के से पूछा : 'बच्चे! यह तो बता आज तेरी मम्मी इतनी उदार कैसे हो गई? कुंडा भरके खीर मेरे लिए भेजी?' छोटे लड़के ने कहा : 'मेरी मम्मी ने खीर एक बड़ी थाली में निकाली थी और वह पानी भरने गई थी, मैं बाहर खेल रहा था, इतने में एक काला कुत्ता आया और खीर को चाटने लगा। मेरी मम्मी पानी भरके आई, उसने देखा... कुत्ते को तो भगाया, परन्तु अब वह खीर हमारे लिए नापाक हो गई थी। हम लोग तो उस खीर को खा नहीं सकते थे। मम्मी For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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