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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ८ १०३ थे। ‘निसीहि ́ बोलकर प्रवेश करना, परमात्मा को तीन प्रदक्षिणा देना, तीन बार प्रणाम करना, अंगपूजा और अग्रपूजा करना, भावपूजा में प्रवृत्त होने के लिए उत्तरीय वस्त्र के छौर से जमीन का प्रमार्जन करना, परमात्ममूर्ति के सन्मुख ही दृष्टि स्थापित करना, सूत्रपाठ का शुद्ध उच्चारण करना, सूत्र के अर्थ और भाव में अपने मन को जोड़ना, परमात्म-स्तवन में लीन - तल्लीन हो जाना, 'प्रार्थनासूत्र' के माध्यम से मार्गानुसारिता से निर्वाण तक माँग लेना और हृदय में अद्भुत भावोल्लास भरकर वापस घर लौटना, यह उनका प्रतिदिन का धर्मानुष्ठान था । मानना ही पड़ेगा कि इस पवित्र धर्मानुष्ठान का ही प्रभाव था कि वे कभी दुःखों में घबराए नहीं, दीन बने नहीं । दुःख और संकट तो प्रत्येक मनुष्य के जीवन में आते हैं, परन्तु बहुत थोड़े धीर और वीर पुरुष होते हैं कि जो दुःख आने पर दीन नहीं बनते, संकट आने पर रोते नहीं । परमात्मश्रद्धा जिनकी आत्मा के प्रदेश-प्रदेश में फैल गई हो उनको भय किस बात का? वे तो अभय होते हैं और दूसरों को अभय करते हैं। महामंत्री पेथड़शाह ऐसे ही धीर-वीर महापुरुष थे। वे निर्भय थे। गुणवानों के प्रति आदरवाले थे और अपने उचित कर्तव्यों के पालन में नित्य उल्लसित थे। कभी किसी धर्मानुष्ठान में आलस्य नहीं, प्रमाद नहीं या थकान नहीं । परमात्मपूजन के विधिवत् धर्मानुष्ठान का यह प्रभाव था, यह बात मत भूलना। अलबत्ता, विधि उनके लिए सहजस्वाभाविक बन गई थी । उनको यह विचार भी नहीं आता होगा कि 'मुझे ऐसी ऐसी विधि का पालन करना है!' वे परमात्मा की मूर्ति के माध्यम से परमात्मा के ही दर्शन करते होंगे। अन्यथा इतनी तल्लीनता पाषाण की मूर्ति में कैसे संभव हो सकती है? जब पेथड़शाह परमात्मा की पुष्पपूजा करते थे, तब इतने तल्लीन बन जाते कि पास में आकर कौन खड़ा है, कौन बैठा है, उसका भी उनको ध्यान नहीं रहता था। मांडवगढ़ का राजा था जयसिंह, उसका एक नाम श्रीराम भी मिलता है कथा-ग्रन्थों में। दूसरे कुछ ईर्ष्यालु राजपुरुषों ने पेथड़शाह के विरुद्ध राजा के कान भर दिये । राजा को महामंत्री पर दृढ़ विश्वास था । उन विद्वेषी लोगों ने राजा से कहा : 'महाराजा, आप भले पेथड़शाह पर विश्वास करते रहो, परन्तु पेथड़शाह तो आपको पदभ्रष्ट कर, राजसिंहासन पर बैठना चाहता है।' राजा ने पूछा : 'इस बात का सबूत क्या है तुम्हारे पास ? तुम्हारे कहने मात्र से मैं ऐसी बात नहीं मान सकता । ' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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