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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८ १०० करने को तैयार थे। जो-जो क्रिया-अनुष्ठान करने पड़े, करने की तैयारी थी। जैसे फकीर ने अनुष्ठानादि करने को कहा, उन महाशय ने सब कुछ किया। धर्मक्रिया में विधि का आदर करना जरूरी है : धर्मक्रिया जिस प्रकार करनी चाहिए, उस प्रकार क्यों नहीं करते? धर्मानुष्ठान से कोई कार्यसिद्धि करने की तमन्ना ही नहीं है। इसलिए जैसे-तैसे मनचाहे ढंग से धर्मक्रियाएँ करते हैं। वह भी इसलिए कि 'ऐसी भी प्रमादयुक्त धर्मक्रिया करने से, पुण्यकर्म बंधता है... ऐसा कहीं से सुन लिया है! ऐसे कुछ उदाहरण सुन लिए हैं, बस, आप विश्वस्त हो गए। आसन, मुद्रा, काल, शुद्धि, क्षेत्र इत्यादि बातों का लक्ष्य रखे बिना भी धर्मक्रिया करने लग गए! उसमें संतोष भी कर लिया! कुछ अहंकार भी कर लिया! सही बात है न? अविधि और अबहुमान से की हुई धर्मक्रियाओं पर भी अभिमान! 'मैंने इतनी धर्मक्रियाएँ कीं।' यह मिथ्या अभिमान है। मत करो अभिमान, अन्यथा डूब जाओगे भवसागर में। विधि की उपेक्षा विधि के प्रति अनादर है। यह उपेक्षा और अनादर शत्रुता है धर्मक्रियाओं के प्रति । परमात्मा के मंदिर में जाते हो न? परमात्मा के प्रति प्रीति और भक्ति से प्रेरित होकर जाते हो? परमात्मा के प्रति प्रेम है तो उनके मंदिर के प्रति भी आदर होना स्वाभाविक है। कैसे जाते हो मंदिर? किस समय? कैसे वस्त्र पहनकर? क्या लेकर? परमात्मा के दर्शन-पूजन की विधि का ज्ञान प्राप्त किया है क्या? मंदिर में कैसे खड़े रहना, कैसे बैठना, कैसे बोलना, कैसे मंदिर से बाहर निकलना...वगैरह का ज्ञान लिया है? धर्मक्रिया में उल्लास कब पैदा होगा? : सभा में से : हमें तो ऐसा कोई ज्ञान नहीं! यों ही चले जाते हैं मंदिर! महाराजश्री : इतने बड़े हुए और इतने वर्षों से मंदिर जाते हो, फिर भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया...दुःख की बात है। अब आपकी बात समझ में आती है कि मंदिर में जाने पर भी हृदय शुष्क क्यों बना रहता है? भावोल्लास क्यों प्रकट नहीं होता है? परमात्मा का दर्शन एक अनुष्ठान है। परमात्मपूजन एक अनुष्ठान है। अनुष्ठान यानी क्रिया । उस अनुष्ठान को 'धर्म' बनाने के लिए 'यथोदितं' यानी जिस प्रकार वह अनुष्ठान करने का ज्ञानी पुरुषों ने कहा है उस प्रकार करना होगा | उस प्रकार करने के लिए आपके मन में कोई कार्यसिद्धि का ध्येय होना For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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