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________________ २४१ १७ [१] प्रथमं परिशिष्टम् श्रीविचाररत्नाकरे आगमादिपाठादीनामकाराद्यनक्रमः॥ [३४९ जे केइ अणुवहाणेणं [म.नि./अ.३] २५५ जे केइ णालियाबद्धा, [प्रज्ञा./१-१२३] १५२ जे गिहिवत्थं परिहेति, [नि.सू./७५७] २४८ जे जे सरिसा धम्मा, [नि.भा./३३५७गा.] जे धम्मलद्धं विनिहाय भुंजे, [सुय.श्रु.१/अ.७/४०१गा.] जे बायरे विहाणा [आचा.श्रु.१/अ.१/उ.२/नि.७९]४ जे भिक्खू अन्नउत्थिएण वा [नि.सू./७८६गा.] २४९ जे भिक्खू अविहीए वत्थं [नि.सू./४९] २९३ जे भिक्खू उवगरणं [नि.भा./४२०४गा.] २५० जे भिक्खू गिहिणिसेज्जं वाहेति [नि.सू./७५८गा.] जे भिक्खू ठवणाकुलाति [नि.सू./२१७सू.] जे भिक्खू मुहवन्नं करेति, [नि.सू./७२४] जे भिक्खू वत्थस्स एगं [नि.सू./४७] जे भिक्खू वत्थस्स एगं [नि.सू./५०] २९३ जे भिक्खू वत्थस्स परं [नि.सू./४८] जे भिक्खू वत्थस्स परं [नि.सू./५१] २९३ जे भिक्खू वा भिक्खूणी वा [नि.सू./३०३] जे भिक्खू वा भिक्खूणी वा [नि.सू./३०५] २९४ जे भिक्खू वा भिक्खूणी वा [नि.सू./३०६] २९४ जे भिक्खू सलोमाइं अहिढेइ [नि.सू./७५१सू.] जे यावन्ने तहप्पगारा [प्रज्ञा./१-४२सू.] १५१ जे लहुसएण सीतोदगवियडेण [नि.सू./७९सू.] २३८ जेणेव सावत्थी णगरी [राजप्रश्न्याम्] जो जारिसओ कालो [आ.प./३९गा.] २८९ जो पुण आहारपोसहो [पौ.प्र./जि.व.सूरिकृत] जो भणइ नत्थि धम्मो, [तीर्थो.प्रकीर्णके] ३१७ ज्ञानद्रव्यं हि देवद्रव्यवन्न [श्राद्धविधौ] ३०३ [ठ] ठवणकुलाओ दुविहा, [नि.भा./१६१७गा.] २४० [ण] णत्थि य सि अंगमंगा, [आचा.श्रु.१/अ.१/उ.२/नि.९८] ५ णवविहे पुन्ने पन्नत्ते। [स्था.९/६७६सू.] २४३ २०० ३१० ratan-p\3rd proof 349
SR No.009628
Book TitleVicharratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages452
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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