SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रभुजी पंचधातु के हों या बिल्कुल छोटे हों अथवा सिद्धचक्र का गट्टा हो, पूजा करते समय वह बिल्कुल नहीं हिलना चाहिए। अधिक भगवान की पूजा संक्षिप्त रूप से करने की बजाय थोड़े भगवान की पूजा विधिपूर्वक करने से विशेष लाभ होता है। केशर लालघूम नही होना चाहिए। अत्यन्त धैर्यपूर्वक, गम्भीरता से , स्थिर चित्त से तथा कोमलता पूर्वक प्रभुजी की पूजा करनी चाहिए। यदि किसी भाविक ने प्रभुजी की भव्य आंगी की हो तो केशर पूजा का आग्रह नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसकी अनुमोदना करनी चाहिए। मंदिर में मूलनायक की पूजा की देरी हो तथा अन्य प्रभुजी की पूजा करनी हो तो थोड़ा सा केशरअलग से एक कटोरी में रख कर पूजा करनी चहिए। केशर पूजा करते समय यदि परमात्मा के अंगों में केसर बह रहा हो तो उसे स्वच्छ वस्त्र से पोंछ कर उसके बाद पूजा करनी चाहिए। पूजा के क्रम में सर्व प्रथम मूलनायकजी, उसके बाद अन्य परमात्मा, उसके बाद सिद्धचक्रजी यन्त्र-गट्टा, वीशस्थानक यन्त्र-गट्टा, प्रवचनमुद्रा में गणधर भगवंत तथा अन्त में 07 (55) 323
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy