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________________ अंग-रचना (आंगी) विधि • चांदी आदि के खोखा, मुगट, पांखडे आदि के उपर आंगी करते समय मुखकोश बांधना जरूरी है।• सुवर्ण, चांदी, हीरा, माणेक, मोती आदि उत्तम द्रव्यो से आंगी हो सकती है। सवर्ण-चांदी व ताँबे के टीके से भी हो शकती है। मगर क्रोम-लोहा आदि हलकी धातु से नहि।.शुद्ध सुखड का पावडर, सुवर्ण व चांदी के बदले और शुद्ध रेशम के दागे (लच्छी) से कर सकते है। • सुवर्ण व चांदी के शुद्ध वरख भी लगा शकते है। वरख को डहाने वाला कापूस (Cotton) शुद्ध व स्वच्छ होना जरुरी है। वह Cotton केशरवाला हो जाए,गीला हो जाए, अपने शरीर को छु जाए, नीचे गिर जाए तो उसका त्याग करना चाहिए।.केशर के प्रमाणोपेत तांतणे से तैयार घीसा हुआ केशर व देशी कपूर से हो शकती है। किसीने नहि पहेने हो ऐसे सुवर्ण-चांदी के अलंकार प्रभुजी को चढ़ा सकते है। वह अलंकार वापस लेने की संकल्पना के साथ चढाया हो, तो उसे अपने लिए वापस ले सकते है। संपूर्ण स्वच्छ थाली में अथवा स्वच्छ वस्त्र पर प्रभुजीको बीराजमान करके आंगी कर सकते है। पूजा की थाली आदि को उलटी करके उसमे प्रभुजी को नहीं बिठाना चाहिए । बांदला लगाने हेतु प्रभुजी को आगे या पीछे झकाना नही चाहिए।.रुई (Cotton), मखमल (Welwet),उणे दागे (Woolen Thread),सूत्ती दागे (Cotton Thread), या मखमल के टीके आदि अतिजघन्य कोटि की चीजों से और खाने लायक सामग्री से कभी भी आंगी नही करनी चाहिए। बिना सुगंध के पुष्प, पुष्प की कलियाँ व पर्ण केशरवाले गिले पुष्प, पूर्ण अविकसित पुष्प औरपुष्पो के पीछे वरख की पीछे का कागज़ लगाकर आंगी नही करनी चाहिए। दसरे दिन आंगी उतारने के बाद उसमें से 'निर्मल देवद्रव्य'का संचय हो, एसी भव्य आंगी करनी चाहिए। (53)
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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