SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलनायक भगवान की दाहिनी ओर जयणापूर्वक सामग्री के साथ तीन प्रदक्षिणा करनी चाहिए। प्रभु के सामने आधा झुककर योग मुद्रा में भाववाही स्तुतियाँ मन्द स्वर में बोलनी चाहिए। पूजा की सामग्री, दोनों हथेली तथा मुखकोश वस्त्र को धूप से सुगन्धित करनी चाहिए। जहाँ से प्रभुजी दिखाई न दें, वहाँ जाकर अष्टपद मुखकोश बाँधकर स्वच्छ जल से दोनों हाथ धोना चाहिए। शरीर-वस्त्र व अन्य किसी का भी स्पर्श न हो, इस प्रकार ध्यानपूर्वक पूजा की सामग्री के साथ गर्भद्वार के पास जाना चाहिए। गर्भद्वार में दाहिने पैर से प्रवेश करते हुए आधा झुककर दूसरी बार तीन बार निसीहि बोलना चाहिए। मृदु-कोमल हाथों से प्रभुजी के ऊपर पड़े बासी फूल , हार, मुकुट, कुंडल, बाजूबंद, चांदी की आंगी आदि उतारना चाहिए। फिर भी कहीं-कहीं रह गए निर्माल्य को दूर करने के लिए कोमल हाथों से मोरपिच्छ फिराना चाहिए। पबासन में एकत्रित निर्माल्य को दूर करने के लिए स्वच्छ पूंजणी का उपयोग करना चाहिए। गर्भद्वार के फर्श को साफ करने के लिए लोहे के तारों से रहित झाडूका जयणापूर्वक उपयोग करना चाहिए। (10)
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy