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________________ फिर दूसरी-निसीहि' बोलकर प्रातःकाल की पूजा के जैसे ही अनुक्रम से धूप पूजा व दीपक पूजा करनी चाहिए। उसके बाद तीन बार भूमि प्रमार्जना खेस (दुपट्ट) से करके 'तीसरी-निसीहि' बोलकरईरियावहियं सहित चैत्यवन्दन करना चाहिए। सांयकालीन पच्चक्खाण लेकर अपनी पीठ प्रभुजी को न दिखे, वैसे बहार निकलकर उपाश्रय की ओर जाना चाहिए।सूर्यास्त के बाद घंटनाद करना उचित नहीं है । उपाश्रय में पूज्य गुरुभगवंत को गुरुवंदन करके पच्चक्खाण लेकर सायंकालीन देवसिअ आदि प्रतिक्रमण करना चाहिए। (देवसिअआदि सायंकालीन प्रतिक्रमण से पहले ही यह पूजा की जाती है।) जिन-पूजा विधि (मध्याह्नकाल की पूजा) । स्वार्थमय संसार से मुक्ति पाने एवं निःस्वार्थ प्रभु की शरण में जाने हेतु मन में भावना करनी चाहिए। स्नान के मन्त्र बोलते हुए उचित दिशा में बैठकर जयणापूर्वक स्नान करें। वस्त्र से सम्बन्धित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए धूप से सुवासित अत्यन्त स्वच्छ वस्त्र, स्वच्छ ऊनी परशाल खड़े होकर धारण करना चाहिए। 8
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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