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________________ को प्रगट करना चाहिए। • स्वद्रव्य से पूजा करने की भावना होते हुए भी जिनमंदिर मे वह सामग्री लाने मे असमर्थ ऐसे आराधकों शक्ति अनुसार कुछ नगद रुपये भंडार में भरने के बाद मंदिर की सामग्री का उपयोग करना चाहिए । भाईयों को और बहनों प्रभुजी की बांई ओर खड़े रहकर धूपकाठी / धूपदानी हृदय के नजदीक स्थिर रखकर धूपपूजा करनी चाहिए। • भाईयों को दाहिनी ओर और बहनों को बांई ओर खड़े रहकर फानूस युक्त दीपक को प्रदक्षिणाकार नाभि से उपर और नासिका से नीचे रखकर दीपक पूजा करनी चाहिए । • भाईयों को दाहिनी ओर ओर बहनों बांई ओर खड़े रहकर दर्पण को हृदय की बांई ओर स्थापित कर उसमे प्रभुजी का दर्शन होते ही सेवकभाव से पंखे को ढालना चाहिए । • भाईयों को दाहिनीं ओर और बहनो बांई ओर खड़े रहकर चामर नृत्य करना चाहिए । • आरती मंगलदीपक या शांतिकलश मंदिर मे चलता हों, तो उसमें यथाशक्ति समय का योगदान देना चाहिए । मध्याह्न काल की पूजा के मुताबिक अक्षत- नैवेध - फल पूजा अनुक्रम से करनी चाहिए। हाथ रुमाल से या सुयोग्य वस्त्र से तीन बार भूमि प्रमार्जना करके द्रव्य - पूजा के त्याग स्वरूप 'तीसरी निसीहि' बोलनी 3
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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