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________________ शाम कां पच्चक्खाणो पाणहार पाणहार दिवसचरिमं, पच्चक् खाइ, ( पच्चक्खामि ) अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ ( वोसिरामि ) । चउविहार- तिविहार- दुविहार " दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, ( पच्चक्खामि ), चउव्विहंपि, तिविहंपि, दुविहंपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरइ (वोसिरामि ) । ( पच्चक्खाण करनेवाले को 'पच्चक्खामि व वोसिरमि' अवश्य बोलना चाहिए ) उसके बाद खमासमण देने के बाद प्रभुजी की भक्ति से उत्पन्न आनन्द को व्यक्त करने के लिए स्तुति बोलनी चाहिए। (जैसे- आव्यो शरणे तमारा, भवोभव तुम चरणोनी सेवा...., जिने - भक्तिर्जिने भक्ति..., अद्य मे सफलं जन्म..., पाताले यानि बिम्बानि..., अन्यथा शरणं नास्ति... अन्त में उपसर्गाः क्षयं यान्ति तथा सर्व मंगल मांगल्यं बोलना चाहिए । ) 101
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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