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________________ DEVIPULIBOO1.PM65 (5) (तत्त्वार्थ सूत्र * * ******अध्याय -) सिद्धान्ताचार्य पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री तत्त्वार्थ सूत्र * *** ******###अध्याय .) भी ले ली गयी हैं। इस तरह यह मेरी टीका अब तक की हिन्दी टीकाओं सेकछ भिन्न ही प्रकार की है। मैंने प्रत्येक अर्थ और विशेषार्थ को नपे तुले शब्दों में लिखा है, ज्यादा विस्तार नहीं किया है, फिर भी अपनी दृष्टि से इस ढंग से लिखा है कि पढ़नेवाला सरलता से उसे समझ जाये । वैसे तो तत्त्वार्थसूत्र के सभी विषय गहन हैं और बिना किसी के समझाये उसे समझना कठिन है। तत्त्वार्थ सूत्र जैन पारिभाषिक शब्दों का भण्डार है अतः उसकी टीका में उन शब्दों की परिभाषाएँ आना स्वाभाविक है। जैन परिभाषाओं से अनजान व्यक्ति को कभी-कभी जैन ग्रन्थ पढ़ते हुए बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ जाता है। यदि मेरे इस प्रयत्न से छात्रों और स्वाध्याय प्रेमियों को कुछ भी लाभ पहुँच सका तो अपने प्रयत्न को सफल समझंगा। जयधवला कार्यालय, - कैलाशचंद्र शास्त्री, भदैनी, बनारस आध्यात्मिक भजन) ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावै, जातो जिनवानी न सुहावै ॥ टेक ॥ वीतराग से देव छोड़कर, भैरव यक्ष मनावै। कल्पलता दयालुता तजि, हिंसा इन्द्रायणि बावै ॥ ऐसा ॥ गुरु निर्गन्थ भेष न रूचै बह परिग्रही गुरु भावै। पर धन परतिय को अभिलाषै, अशन अशोधित खावै ।। ऐसा ।। पर की विभव देख है सोगी, परदुख हर्ष लहावें। धर्म हेतु इक दाम न खरचै, उपवन लक्ष बहावै ।ऐसा ॥ जो गृह में संचय बहु अघ, त्यों वन हू में उपजावे। अम्बर त्याग कहाय दिगम्बर, बाघम्बर तन छावै ॥ ऐसा ॥ आरम्भ तज शठ यंत्र-मंत्र करि, जन पै पूज्य मनावै। धाम बाम तज दासी राखै, बाहिर मढ़ी बनावै ॥ ऐसा ।। नाम धराय यती तपसी मन, विषयन में ललचावै। "दौलत सो अनंत भव भटकै, औरन को भटकावै ॥ऐसा ॥ जैन दर्शन एवं संस्कृत-प्राकृत के प्रतिष्ठित विद्वान, प्रवक्ता, लेखक। जन्म : १९०३, नहटौर (उ.प्र.)। लगभग छः दशक तक स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी से सम्बद्ध : अध्यापक (१९२७-४०), प्रधानाचार्य (१९४०-७२), १९५६ से महाविद्यालय के अधिष्ठाता । १९४० से मन्त्री, साहित्य प्रकाशन, भारतीय दिगम्बर जैन संघ, मथुरा । १९४७ और १९५९ में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् के अध्यक्ष । १९६३ में देवकुमार प्राच्य-विद्या शोधसंस्थान, आरा द्वारा सिद्धान्ताचार्य उपाधि से सम्मानित । प्रमुख कृतियाँ : जैनधर्म, दक्षिण भारत में जैनधर्म, जैन साहित्य का इतिहास, जैन न्याय, नमस्कार मन्त्र, भगवान् ऋषभदेव, प्रमाण-नय-निक्षेप, जैन सिद्धान्त और समीचीन जैनधर्म । सम्पादन-अनुवाद: उपासकाध्ययन, नयचक्र, कुन्दकुन्दप्राभृत-संग्रह, तत्त्वार्थसूत्र, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गोम्मटसार (जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड), धर्मामृत (सागार, अनगार) आदि । भारतीय ज्ञानपीठ की मूर्तिदेवी एवं सोलापुर की जीवराज ग्रन्थमाला के प्रधान सम्पादक तथा साप्ताहिक जैन सन्देश पत्रिका के सम्पादक भी रहे। निधन : १९८७, रांची (झारखण्ड)।
SR No.009608
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherPrakashchandra evam Sulochana Jain USA
Publication Year2006
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Tattvartha Sutra
File Size3 MB
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