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________________ DRIVIPULIBO01.PM65 (12) (तत्त्वार्थ सूत्र *************** अध्याय - सम्यग्दृष्टियों के कर्म निर्जरा की हीनाधिकता 207 निर्ग्रन्थ के भेद 209 निर्ग्रन्थों में विशेषता का विचार 210 212 212 195 213 213 (तत्त्वार्थ सूत्र 22************अध्याय -D किस कर्म के उदय से कौन परीषह होती है ? 191 एक साथ एक जीव में कितनी परीषह हो सकती हैं? 192 चारित्र के भेद और उनका स्वरूप 193 बाह्य तप के भेद और उनका स्वरूप 194 परीषह और कायक्लेश में अन्तर अभ्यन्तर तप के भेद 195 अभ्यन्तर तप के उपभेदों की संख्या प्रायश्चित के भेद 196 विनय के भेद 197 वैयावृत्य के भेद 198 स्वाध्याय के भेद 198 व्युत्सर्ग के भेद 199 ध्यान का वर्णन 199 ध्यान के भेद 200 आर्तध्यान के भेद और उनके लक्षण 201 आर्तध्यान के स्वामी रौद्रध्यान के भेद और उनके स्वामी 202 धर्मध्यान का स्वरूप शुक्लध्यान के स्वामी 203 शुक्लध्यान के भेद 203 शुक्लध्यान का आलम्बन 204 आदि के दो शक्ल ध्यानों का विशेष कथन 204 वीतर्क का लक्षण 204 वीचार का लक्षण 204 पृथकत्व वितर्क वीचार एकत्व वितर्क सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति समुच्छिन्न क्रिया निवति दशम अध्याय केवल ज्ञान की उत्पत्ति के कारण मोक्ष का लक्षण और उसके कारण कर्म के अभाव का क्रम कुछ भावों के अभाव का कथन मुक्तावस्था में शेष रहने वाले क्षायिक भाव मुक्तावस्थाकी कुछ बातों को लेकर शंका-समाधान मुक्त होते ही ऊर्ध्वगमन ऊर्ध्वगमन में हेतु और दृष्टान्त लोक के अन्त तक ही जाने का कारण मुक्त जीवों में भेद व्यवहार का विचार क्षेत्र काल गति 215 202 लिंग तीर्थ चारित्र प्रत्येक बुद्ध बोधित ज्ञान अवगाहना अन्तर संख्या अल्प बहुत्व
SR No.009608
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherPrakashchandra evam Sulochana Jain USA
Publication Year2006
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Tattvartha Sutra
File Size3 MB
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