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________________ (वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी को परम पूजनीय श्री दादा भगवान के माध्यम द्वारा प्रत्यक्ष नमस्कार पहूँचते है। कौसमें लिखी संख्या के अनुसार प्रतिदिन एक बार पढ़ें।) प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रो में विहरमान 'तीर्थंकर साहिबों' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। वीतराग शासन देव-देवीयों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। निष्पक्षपाती शासन देव-देवीयों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। चौबीस तीर्थंकर भगवंतो को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी से प्रार्थना * हूँ। __ * 'श्री कृष्ण भगवान' को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। भरत क्षेत्र में हाल विचरते सर्वज्ञ श्री दादा भगवान' को निश्चय से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। 'दादा भगवान' के सभी समकितधारी महात्माओं को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कर करता हूँ। सारे ब्रह्मांड के जीवमात्र के 'रियल' स्वरूप को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही भगवद् स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'भगवद् स्वरूप' में दर्शन करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही शुद्धात्मा स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'शुद्धात्मा स्वरूप' में दर्शन करता हूँ। 'रियल' स्वरूप वही तत्त्व स्वरूप है। इसीलिए सारे जग को 'तत्त्वज्ञान' से दर्शन करता हूँ। प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदह क्षेत्र में विचरते तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। हे निरागी, निर्विकारी, सच्चिदानंद स्वरूप, सहजानंदी, अनंतज्ञानी, अनंतदर्शी, त्रैलोक्य प्रकाशक, प्रत्यक्ष-प्रकट ज्ञानी पुरुष श्री दादा भगवान की साक्षी में आपको अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करके आपकी अनन्य शरण स्वीकार करता हूँ। हे प्रभु! आपके चरणकमल में मुझे स्थान देकर अनंतकालिन भयंकर भटकन का अंत लाने की कृपा करें, कृपा करें। हे विश्ववंद्य ऐसे प्रकट परमात्म स्वरूप प्रभु, आपका स्वरूप ही मेरा स्वरूप है पर अज्ञानतावश मुझे मेरा परमात्म स्वरूप समझ में नहीं आता, इसलिए आपके स्वरूप में मेरे स्वरूप का निरंतर दर्शन करूँ ऐसी मुझे परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे। हे परमतारक देवाधिदेव! संसार रूपी नाटक के आरंभकाल से आज के दिन की अद्यक्षण पर्यंत, किसी भी देहधारी जीवात्मा के मनवचन-काया के प्रति जाने-अनजाने में जो अनंत दोष किये है. उन प्रत्येक दोष को देखकर, उसका प्रतिक्रमण करने की मुझे शक्ति दे। इन सभी दोषों का मैं आप से क्षमाप्रार्थी हूँ। आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करता हूँ। हे प्रभु! मुझे क्षमा करे, क्षमा करे, क्षमा करे और मझसे फिर ऐसे दोष कभी भी न हो ऐसा द्रढ निर्धार करता हैं। इसके लिए मझे जागृति अर्पे; परम शक्ति दे, शक्ति दे, शक्ति दे। (५)
SR No.009607
Book TitleVartaman Tirthankar Shri Simandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size314 KB
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