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________________ वाणी, व्यवहार में... तो भयंकर जोखिम है, गुनाह है! मज़ाक तो किसीका भी नहीं करना चाहिए। फिर भी ऐसा मजाक करने में हर्ज नहीं है कि जिससे किसीको दु:ख नहीं हो और सभी को आनंद हो। उसे निर्दोष मजाक कहा है। वह तो हम अभी भी करते हैं। क्योंकि मूल स्वभाव जाता नहीं है न! पर उसमें निर्दोषता ही होती है! हम जोक (मज़ाक) करते हैं, पर निर्दोष जोक करते हैं। हम तो उसका रोग निकालते हैं और उसे शक्तिवाला बनाने के लिए जोक करते हैं। जरा मज़ा आए, आनंद आए और फिर वह आगे बढ़ता जाए। बाक़ी वह जोक किसीको दुःख नहीं देता। ऐसा मज़ाक चाहिए या नहीं चाहिए? सामनेवाला भी समझता है कि ये विनोद कर रहे हैं, मज़ाक नहीं उड़ा रहे हैं। अब हम किसीका मजाक करें, तो उसके भी हमें प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। हमें ऐसे ही चल जाए वैसा नहीं है। बाक़ी, मैंने सब तरह की मज़ाक उड़ाई हुई हैं। हमेशा सब प्रकार की मजाक कौन करता है? बहुत टाइट ब्रेन हो वह करता है। मैं तो आराम से मजाक उड़ाता था सबका, अच्छे-अच्छे लोगों का, बड़े-बड़े वकीलों का, डॉक्टरों का मज़ाक करता था। अब वह सारा अहंकार तो गलत ही है न! वह अपनी बुद्धि का दुरुपयोग किया न! मजाक करना वह बुद्धि की निशानी है। ६६ वाणी, व्यवहार में... प्रकार के जोखिम आते हैं? दादाश्री : ऐसा है, कि किसीको धौल मारी हो न और जो जोखिम आए, उससे तो यह मजाक करने में अनंत गुना जोखिम है। उसकी बुद्धि ज्यादा नहीं है, इसलिए आपने अपनी लाइट से (अधिक बुद्धि से) उसे कब्जे में लिया। इसलिए फिर वहाँ पर भगवान कहेंगे, 'इसे बुद्धि नहीं है उसका यह लाभ उठा रहा है?' वहाँ पर खुद भगवान को हमने प्रतिपक्षी बनाया। उसे धौल मारी होती तो वह समझ जाता, यानी खुद मालिक बन जाता। पर यह तो बुद्धि पहुँचती ही नहीं, इसलिए हम उसकी मजाक करें तो वह खुद मालिक नहीं बनता। इसलिए भगवान जानते हैं कि 'ओहोहो, इसकी बुद्धि कम है, इसे तू फँसा रहा है?! आ जा।' उसके बदले में भगवान प्रतिपक्षी बन बैठते हैं, वह तो फिर आपको परेशानी में डाल देगा। १२. मधुरी वाणी के, कारणों का ऐसे करें सेवन प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने के बाद हमारी वाणी बहुत ही अच्छी हो जाएगी, इसी जन्म में ही? दादाश्री : उसके बाद तो और ही प्रकार का होगा। हमारी वाणी सर्वतोत्कृष्ट कक्षा की निकलती है, उसका कारण ही प्रतिक्रमण है। व्यवहारशुद्धि के बिना स्यादवाद वाणी नहीं निकलती है। पहले व्यवहारशुद्धि होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : वाणी बोलते समय किस प्रकार की जागृति रखनी चाहिए? दादाश्री : जागृति ऐसी रखनी चाहिए कि यह बोल बोलने में किसकिसका प्रमाण किस-किस प्रकार से खंडित होता है, वह देखना है। प्रश्नकर्ता : सामनेवाले के साथ बातचीत करते समय क्या ध्यान में रखना चाहिए? दादाश्री : एक तो उनके साथ बात करनी हो तो आपको उनके 'शुद्धात्मा' की अनुमति लेनी होगी कि इन्हें अनुकूल आए ऐसी वाणी मुझे प्रश्नकर्ता : मुझे तो अभी भी मजाक करने का मन होता रहता दादाश्री : मज़ाक उड़ाने में बहुत जोखिम है। बुद्धि से मजाक उड़ाने की शक्ति होती ही है और उसका जोखिम भी उतना ही है फिर। यानी हमने पूरी ज़िन्दगी जोखिम उठाया है। जोखिम ही उठाते रहे हैं। प्रश्नकर्ता : मजाक करने के क्या-क्या जोखिम होते हैं? किस
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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