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________________ संपादकीय प्रदान किया। जिसे सुबह-शाम पाँच-पाँच बार उपयोगपूर्वक बोलने को कहा है। जिससे सांसारिक कार्य शांतिपूर्ण रूप से संपन्न होते हैं। ज्यादा अड़चनों की स्थिति में घण्टा-घण्टा भर बोलें, तो मुश्किलों में सूली का घाव सूई से टल जायेगा। निष्पक्षपाती त्रिमंत्र का शब्दार्थ, भावार्थ और किस प्रकार यह हितकारी है, इसका सर्वलक्षी समाधान दादाश्री ने प्रश्नोत्तर रूप में दिया है। वे सारी बातें प्रस्तुत पुस्तिका में संकलित हुई हैं। इस त्रिमंत्र की आराधना से प्रत्येक के जीवन के विघ्न दूर होंगे और निष्पक्षपातीपन उत्पन्न होगा। - डॉ. नीरूबहन अमीन अनादि काल से प्रत्येक धर्म के मूल पुरुष जब विद्यमान होते हैं, जैसे कि महावीर भगवान, कृष्ण भगवान, राम भगवान आदि; तब वे लोगों को विभिन्न धर्मो के मतमतांतर से बाहर निकालकर आत्मधर्म में स्थिरता करवाते हैं। और कालक्रम अनुसार मूल पुरुष की गैरहाज़िरी होने पर इस दुनिया के लोग आहिस्ता-आहिस्ता मतभेद में पड़कर धर्मबाड़े-संप्रदाय में विभक्त हो जाते हैं। जिसके फल स्वरूप धीरे धीरे सुख-शांति क्षीण होती जाती है। धर्म में तू-तू मैं-मैं से झगड़े होते हैं। उसे दूर करने के लिए यह निष्पक्षपाती त्रिमंत्र है। इन त्रिमंत्रों का मूल अर्थ यदि समझें तो उनका किसी व्यक्ति या संप्रदाय या पंथ से कोई सरोकार (संबंध) नहीं है। आत्मज्ञानी से लेकर अंततः केवलज्ञानी और निर्वाण प्राप्त करके मोक्षगति प्राप्त करनेवाले ऐसे उच्च, जागृत आत्माओं को ही नमस्कार निर्दिष्ट हैं। जिन्हें नमस्कार करने से संसारी विघ्न दूर होते हैं, अड़चनों में शांति रहती है और मोक्ष के ध्येय प्रति लक्ष्य होने लगता है। कृष्ण भगवान ने सारी ज़िन्दगी में कभी नहीं कहा कि 'मैं वैष्णव हूँ, मेरा वैष्णव धर्म है।' महावीर भगवान ने सारी ज़िन्दगी में नहीं कहा कि 'मैं जैन हूँ, मेरा जैन धर्म है। भगवान रामचंद्रजी ने कभी नहीं कहा कि 'मेरा सनातन धर्म है। सभी ने आत्मा की पहचान करके मोक्ष में जाने की बात ही कही है। गीता में कृष्ण भगवान ने, आगमों में तीर्थंकरों ने और योगवशिष्ठ में रामचंद्रजी से वशिष्ठ मुनि ने आत्मा पहचानने की ही बात कही है। जीव यानी अज्ञान दशा। शिव यानी कल्याण स्वरूप। आत्मज्ञान प्राप्ति के पश्चात् उसी जीव में से शिव की प्राप्ति होती है। शिव यानी कोई व्यक्ति की बात नहीं है, जो कल्याण स्वरूप हुए हैं उनकी बात है। आत्मज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादा भगवान ने निष्पक्षपाती त्रिमंत्र
SR No.009605
Book TitleTrimantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2008
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size216 KB
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