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________________ सेवा-परोपकार सेवा-परोपकार मनुष्य जन्म की विशेषता प्रश्नकर्ता : यह मनुष्य अवतार व्यर्थ नहीं जाए, उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : यह मनुष्य अवतार व्यर्थ नहीं जाए, उसीका सारे दिन चिंतन करें तो वह सफल होगा। इस मनुष्य अवतार की चिंता करनी है, वहाँ लोग लक्ष्मी की चिंता करते हैं! कोशिश करना आपके हाथ में नहीं है, पर भाव करना आपके हाथ में है! कोशिश करना दसरों की सत्ता में है। भाव का फल आता है। वास्तव में तो भाव भी परसत्ता है, मगर भाव करें तो उसका फल आता है। प्रश्नकर्ता : मनुष्य जन्म की विशेषता क्या है? दादाश्री : मनुष्य जीवन परोपकार के लिए है और हिन्दुस्तान के मनुष्यों का जीवन 'एब्सोल्युटीज़म' के लिए, मुक्ति के लिए है। हिन्दुस्तान के अलावा बाहर अन्य देशों में जो जीवन है, वह परोपकार के लिए है। परोपकार यानी मन का उपयोग भी दूसरों के लिए करना, वाणी भी दूसरों के लिए उपयोग करनी और वर्तन का उपयोग भी दूसरों के लिए करना! मन-वचन-काया से परोपकार करना। तब कहेंगे. मेरा क्या होगा? वह परोपकार करे तो उसके घर में क्या रहेगा? प्रश्नकर्ता : लाभ तो मिलेगा ही न? दादाश्री : हाँ, मगर लोग तो ऐसा ही समझते हैं न कि मैं दूंगा तो मेरा चला जाएगा। प्रश्नकर्ता : निचली कक्षा के लोग हों, वे ऐसा मानते हैं। दादाश्री : उच्च कक्षावाला ऐसा मानता है कि दूसरों को दिया जा सकता है। जीवन परोपकार के लिए... इसका गुह्य साइन्स क्या है कि मन-वचन-काया परोपकार में लगा दें, तो आपके यहाँ हर एक चीज़ होगी। परोपकार के लिए करो, और यदि फ़ीस लेकर करो तो? प्रश्नकर्ता : तकलीफ़ पैदा होगी। दादाश्री : यह कोर्ट में फ़ीस लेते हैं। सौ रुपये पड़ेंगे, डेढ़ सौ रुपये देने पड़ेंगे। तब कहेंगे, 'साहिब, डेढ़ सौ ले लो।' पर परोपकार का कानून तो नहीं लगता न! प्रश्नकर्ता : पेट में आग लगी हो तो ऐसा कहना ही पड़ता है न? दादाश्री : ऐसा विचार करना ही मत। किसी भी तरह का परोपकार करोगे न तो आपको कोई अड़चन नहीं आएगी, अब लोगों को क्या होता है? अब अधूरा समझकर करने जाते हैं, इसलिए उलटा 'इफेक्ट' आता है। इसलिए फिर मन में श्रद्धा नहीं बैठती और उठ जाती है। आज करना शुरू करें, तब दो-तीन अवतार में ठिकाने लगे वह। यही 'साइन्स' है। अच्छे-बुरे के लिए, परोपकार एक-सा प्रश्नकर्ता : मनुष्य अच्छे भले के लिए परोपकारी जीवन जीता
SR No.009603
Book TitleSeva Paropkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size270 KB
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