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________________ सत्य-असत्य के रहस्य सत्य-असत्य के रहस्य की है यह, सत्य का स्वीकार किया इस तरह से! प्रश्नकर्ता : आम खाया और मीठा लगा, तो वह सत्य घटना कहलाएगी न? दादाश्री : नहीं, वह सत्य घटना नहीं है, वैसे असत्य भी नहीं है। वह रिलेटिव सत्य है, रियल सत्य नहीं है। रिलेटिव सत्य मतलब जो सत्य घड़ीभर बाद नाश होनेवाला है। इसलिए उस सत्य को सत्य ही नहीं कह सकते न ! सत्य तो स्थायी होना चाहिए। देवी-देवताओं की सत्यता कोई कहेगा, 'ये शासन देवियाँ, वह सब बिलकुल सत्य है?' नहीं, वह रियल सत्य नहीं है, रिलेटिव सत्य है। मतलब कल्पित सत्य है। जैसे ये सास और ससुर और जमाई वह सब काम चलता है न, वैसे ही वह (देवी-देवताओं के साथ का) व्यवहार चलता है, जब तक यहाँ संसार में हैं और संसार सत्य माना गया है, रोंग बिलीफ़ ही राइट बिलीफ़ मानी गई है, तब तक उनकी जरूरत पड़ेगी। स्वरूप, संसार का और आत्मा का... यह संसार, वह तो कोई ऐसी-वैसी वस्तु नहीं है, आत्मा का विकल्प है। खुद कल्प स्वरूप और यह संसार वह विकल्प स्वरूप है! दो ही हैं। तो विकल्प कोई निकाल देने जैसी वस्तु नहीं है। यह विकल्प मतलब रिलेटिव सत्य है और कल्प वह रियल सत्य है। तो इस संसार का जाना हुआ सारा ही कल्पित सत्य है। ये सभी बातें हैं न, वे सब कल्पित सत्य हैं। पर कल्पित सत्य की जरूरत है, क्योंकि स्टेशन जाना हो तो बीच में जो बोर्ड है वह कल्पित सत्य है। पर उस बोर्ड के आधार पर हम पहुँच सकते हैं न? फिर भी वह कल्पित सत्य है, वास्तव में सत्य नहीं है वह। और वास्तविक सत्य जानने के बाद कुछ भी जानने को नहीं रहता और कल्पित सत्य को जानने का अंत ही नहीं आता। अनंत जन्मों तक वह करते रहें तो भी उसका अंत नहीं आता। कमी ने सर्जित किए स्थापित मूल्य प्रश्नकर्ता : स्थापित मूल्य किसी गुणधर्म के कारण बने हैं? दादाश्री : कमी के कारण! जिसकी कमी, उसकी बहुत क़ीमत ! सही में गुण की कुछ पड़ी ही नहीं है। सोने के ऐसे खास गुण हैं ही नहीं, कुछ गुण हैं। पर कमी के कारण उसकी क़ीमत है। अभी खान में से सोना यदि खूब निकले न, तो क्या होगा? क़ीमत डाउन हो जाएगी। प्रश्नकर्ता : सुख-दु:ख, सत्य-असत्य, वे द्वंद्ववाली वस्तुएँ हैं। उन्हें भी स्थापित मूल्य ही कहा जाएगा न? जगत् में सच बोलना उसे क़ीमती माना है, झूठ बोलना अच्छा नहीं माना है। दादाश्री : हाँ, वे सभी स्थापित मूल्य ही कहलाते हैं। उसके जैसी ही यह बात है। वह मूल्य और यह मूल्य एक ही है। यदि मानते हो कि 'यह सच्चा है और यह झूठा है' वे सब स्थापित मूल्य ही माने जाते हैं। वह सभी अज्ञान का ही काम है। और वह इस भ्रांत स्वभाव से निश्चित हुआ है। वह सब भ्रांत स्वभाव का न्याय है। किसी भी स्वभाव में न्याय तो होता है न! इसलिए यह स्थापित मूल्य सारे अलग प्रकार के हैं। अर्थात् यह 'सत्य-असत्य' सब व्यवहार तक ही है। भगवान की दृष्टि से... इस व्यवहार सत्य, रिलेटिव सत्य के दुराग्रह का सेवन नहीं करना चाहिए। वह मूल स्वभाव से ही असत्य है। रिलेटिव सत्य किसे कहा जाता है? कि समाज व्यवस्था निभाने के लिए पर्याप्त सत्य! समाज के लिए पर्याप्त सत्य, वह भगवान के वहाँ सत्य नहीं है। तो भगवान से हम पूछे कि, 'भगवान, यह इतना अच्छा काम कर रहा है।' तब भगवान कहते हैं, 'वह अपना फल भोगेगा और यह अपना फल भोगेगा। जैसा बोए वैसा फल भोगेगा। मुझे कोई लेना-देना नहीं है। आम बोएगा तो आम और दूसरा बोएगा तो दूसरा मिलेगा!'
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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