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________________ ५० सत्य-असत्य के रहस्य सत्य-असत्य के रहस्य ____... तो जोखिमदारी नहीं प्रश्नकर्ता : हरएक भूल का हम पछतावा करते रहें, तो फिर उसका पाप तो बंधता ही नहीं न? दादाश्री : नहीं, बंधता तो है। गांठ लगाई हुई हो, वह गांठ तो है ही, पर वह जली हुई गांठ है। इसलिए आनेवाले भव में ऐसे हाथ लगाए न तो झड़ जाएगी। पछतावा करे उसकी गांठ जल जाती है। गांठ तो रहती ही है। सत्य बोलो तो ही गांठ नहीं पड़ती। सत्य बोला जाए वैसी स्थिति नहीं है। परिस्थिति अलग है। प्रश्नकर्ता : तो फिर सच कब बोला जा सकेगा? दादाश्री : संयोग सब सीधे हों, तब सच बोला जाएगा। इसके बदले तो पछतावा करना न! उसकी गारन्टी हम लेते हैं। तू तो चाहे जो गुनाह करे तो उसका पछतावा करना। फिर तुझे जोखिमदारी नहीं आएगी, उसकी गारन्टी है। हमारे सिर पर जिम्मेदारी है, हमारी जिम्मेदारी पर कर रहे हैं। विचार-उच्चार में झूठ हो, पर नई योजना तू गढ़। वह धर्म कहलाता है। अभी तक कहते थे कि आचार-विचार और उच्चार वे सत्य हैं और फिर वैसा विशेष हो वैसी तू योजना गढ़। वह सतयुग की योजना थी। फिर वैसा का वैसा विशेष होता था, वहाँ से बढ़ता था वह। और अब कलियुग में वे दूसरी तरह से सारे शास्त्र रचे जाएंगे और वे सभी को हैल्प करेंगे। और वापिस क्या कहेंगे? कि, 'तू चोरी करता है, उसमें मुझे आपत्ति नहीं, हर्ज नहीं है' ऐसा कहें न, वह बात वह पुस्तक में पढने बैठता है। और 'चोरी नहीं करनी चाहिए' वह पुस्तक परछत्ती पर रख देता है। इन मनुष्यों का स्वभाव ऐसा है! 'आपत्ति नहीं कहा तो वह पुस्तक को पकड़ता है, और वापिस कहेगा कि 'यह पढ़ने से मुझे ठंडक होती है!' इसलिए ऐसे शास्त्र रचे जाएंगे। यह तो मैं बोल रहा हूँ और उसमें से अपने आप नये शास्त्र रचे जाएँगे। अभी पता नहीं चलेगा, पर नये शास्त्र रचे जाएँगे। प्रश्नकर्ता : इतना ही नहीं, पर आपने जो पूरा मेथड लिया है न, वह नया अभिगम है। दादाश्री : हाँ, नया ही अभिगम होगा! लोग फिर पुराने अभिगम को एक ओर रख देंगे। प्रश्नकर्ता : पर आपने भविष्य की बात की, भविष्य कथन किया है कि अब नये शास्त्र लिखे जाएँगे। तो वह समय परिपक्व हो गया है?! दादाश्री : हाँ, परिपक्व हो ही गया है न! समय परिपक्व होता है और वैसा हुआ करता है। समय परिपक्व होकर, वे सभी नये शास्त्र रचने की सारी तैयारियाँ हो रही हैं!! - जय सच्चिदानंद शास्त्र, एडजस्टेबल चाहिए चौथे आरे के शास्त्र पाँचवे आरे में फिट नहीं होंगे। इसलिए ये नये शास्त्र रचे जा रहे हैं। अब ये नये शास्त्र काम में आएंगे। चौथे आरे के शास्त्र चौथे आरे के अंत तक चले थे. फिर वे काम नहीं आए। क्योंकि पाँचवे आरे के मनुष्य अलग, उनकी बातें अलग, उनका व्यवहार अलग ही तरह का हो गया है। आत्मा तो वो का वो ही है, पर व्यवहार तो पूरा बदल गया न! पूरा ही बदल गया न!! ___ अब पुराने शास्त्र नहीं चलेंगे प्रश्नकर्ता : तो कलियुग के शास्त्र अब लिखे जाएँगे? दादाश्री : कलियुग के शास्त्र अब रचे जाएँगे, कि भले तेरे आचार
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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