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________________ सर्व दु:खों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति तो दोष अनंत का पात्र हूँ करूणाळ ।' और दूसरा क्या कहते है कि 'देखा नहीं स्व दोष तो तैरे किस उपाय?' अपना दोष अपने को दिखा नहीं तो तैरने का मार्ग ही नहीं है। ये लोग दो सो-दो सो, पाँच सोपाँच सो प्रतिक्रमण हर रोज करते है, तो आपके दोष आपको क्युं नहीं दिखते? मैं आपको बता दूं? दोष होते है, फिर भी आपको नहीं दिखते तो उसका क्या कारण? दादाश्री : क्यों नहीं दिखती? प्रश्नकर्ता : क्योंकि हमें अज्ञान है। दादाश्री : हाँ, मगर आप वकील रखते है, वो वकीलात करता है कि, सब लोग तो ऐसा करते है, इसमें मेरी क्या गलती है? ऐसा बोलता है कि अपना कोई गुनाह नहीं है। प्रश्नकर्ता : ये वकील अपनी गलती को छिपाते है। दादाश्री: हाँ, वकील सब गलतीओं को छिपाते है। ये सब 'महात्माओं' को हर रोज सो-दो सो गलतीयाँ दिखती है और उतने प्रतिक्रमण भी करते है। आपने कितने प्रतिक्रमण किये? प्रश्नकर्ता : आप बता दो। प्रश्नकर्ता : कभी कभी पश्चात्ताप हो जाता है। दादाश्री : आपने दोष किये है, इसके लिए आप 'आरोपी' है और आप जज भी है और आप वकील भी है। खुद ही वकील, खुद ही जज और खुद ही आरोपी। बोलिए, कितना गुनाह मालूम होगा? खुद जज है, इसलिए बोलता है कि, 'तुम आरोपी है कि नहीं?' तो वकील क्या प्लीडींग करता है कि, 'सब लोग ऐसा करते है, उसमें मेरा क्या गुनाह है?' प्लीडर है कि नहीं तुम्हारी पास? और ये महात्माओं को प्लीडींग नहीं होती, क्योंकि ये दोष होते ही शूट ओन साइट प्रतिक्रमण करते है। शूट ओन साइट इधर होता है न? जब हुल्लड होता है, तब डी.एस.पी. वहाँ उसको शूट ओन साइट करने को बोलता है। लेकिन अंदर जो हुल्लड होता है, तब शूट ओन साइट होना चाहिये। जो दोष होता है, उसका प्रतिक्रमण करो। जितने प्रतिक्रमण किये उतने ही शुद्ध हो गये और प्रतिक्रमण नहीं किया तो फिर क्या होता है? दादाश्री : हाँ, बरोबर है मगर पश्चात्ताप तो फोरेनवाले के लिए है। अपने लोगों को तो प्रतिक्रमण करने का है। ये साधु लोग प्रतिक्रमण करते है वो तो पुस्तक में अर्धमागधी भाषा में लिखा है, वो ही प्रतिक्रमण बोलते है। प्रतिक्रमण का यथार्थ अर्थ क्या है कि तुमने इनके साथ अतिक्रमण किया तो फिर तुम्हारे को प्रतिक्रमण करना ही चाहिए। अतिक्रमण नहीं किया, तो प्रतिक्रमण करने की कोई जरूरत नहीं है। सहज भाव से, क्रमण से दुनिया चल रही है मगर अतिक्रमण याने इसको दु:ख हो जाये ऐसा तुम कुछ करेगा, तो फिर तुम्हारे को प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : Multiplication होता है। - जय सच्चिदानंद दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' के अंदर तो दोष ही नहीं रहते, इसलिए उनको निपँथ बोला जाता है। स्वरूप का ज्ञान होने के बाद वकील नहीं रहता। आप खुद जज है, आप ही आरोपी है और वकील भी आप है, तो कितना गुनाह आपको दिखेगा? तुम्हारी कितनी गलती दिखेगी? प्रश्नकर्ता : अपनी गलती नहीं दिखेगी।
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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