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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति ३८ सर्व दुःखों से मुक्ति प्रश्नकर्ता : यह stage कब आती है? दादाश्री : वो stage हम सिरपे हाथ रखके कर देता है। प्रश्नकर्ता : चिंता का कारण क्या है? दादाश्री : चिंता का कारण egoism है। अपनी belief में ऐसा है कि 'मैं ही चलाता हूँ' ऐसा egoism है, इससे चिंता होती है। कौन चलाता है, वो मालूम हो जाये तो इसकी worries नहीं होगी। लेकिन सच मालूम होना चाहिये। लेकिन वो तो शंका है। इसलिए पल में बोलता है, भगवान चलाते है। थोडी देर में बोलता है, 'मैं चलाता है'। फिर बोलता है, 'मी काय करूं(मैं क्या करूं)।' इसको शंका है। ये world को भगवान चलाते ही नहीं और आप भी चलाते नहीं है। भगवान तो कुछ कर सकते ही नहीं। वो दूसरी शक्ति है, वो ही सब चलाती है। ये बात नहीं जानते इसलिए मन में ऐसा होता है कि मैं ही चलाता हूँ और इससे worries होती है, चिंता हो जाती है। चिंता वो egoism है एक प्रकार का। चिंता किस लिए करते हो? कोई भी जानवर चिंता नहीं करते, तुम क्युं चिंता करते हो? सबको जो जरूरी चीजें है, वो मिल जाती है और आपको भी मिल जाती है। फिर ज्यादा मिले ऐसी आशा रखते है. वो गलत है। स्वार्थ के लिए बहुत आशा रखते है, वो ही दुःख है। नहीं तो देह के लिए सब चीजें ऐसे ही मिल जाती है। दो मिलवाला सेठ होता है, तो उसको एक पल भी शांति नहीं रहती। वो तीसरी मिल बनाने के लिये तैयारी करता है। उसको खाने के लिए भी टाईम नहीं। एक सेठ ने तीसरी मिल बनायी थी, dinner के लिए हमको बुलाया था। हम साथ में खाने बैठे थे और उनकी वाईफ सामने आकर बैठी। तो सेठ ने बोला कि 'क्यु इधर आयी?' तो वो बोली कि 'आज आप ज्ञानी पुरुष के साथ बैठे है, तो आज तो आराम से खाना खाईए।' तो मैं समझ गया कि आराम से कभी वो खाता नहीं। फिर सेठानी हमें बोली कि 'हम खाना टेबल पर रख देते है, वो रखने के पहेले ही सेठ मिल में पहुँच जाते है और फिर Body ही इधर खाती है।' फिर मैंने बोल दिया कि, 'सेठ, आप खाना खाने के time चित्त को absent मत रखो। चित्त को present रखो। नहीं तो आपको Blood pressure हो जायेगा और heart attack भी हो जायेगा!! कैसी जिम्मेदारी आप लेते हो? किसके लिए ये करते हो? कितना लोभ है आपको? आप आराम से खाओ।' कृष्ण भगवान क्या कहेते है कि प्राप्त को भुगत, अप्राप्त की चिंता मत करो। अपनी पास है वो आराम से खाओ। प्रश्नकर्ता : लेकिन चिंता और worries ये सब क्या है? दादाश्री : चिंता और worries वो सब egoism है। प्रश्नकर्ता : तो What is egoism? दादाश्री : आप जो है, वो जानते नहीं और आप नहीं है, वो नाम दिया है, तो वो मान लिया कि मैं रविन्द्र हूँ, वो wrong belief हो गयी, वो ही egoism है। 'मैं रविन्द्र हूँ' ऐसा व्यवहार में तो बोलना चाहिये। मगर व्यवहार में तो only dramatic होना चाहिये और आप तो really बोलते है। Relatively बोलना चाहिये। 'मैं रविन्द्र हूँ' वो बोलना तो चाहिये मगर ऐसी belief नहीं होनी चाहिये। वो तुम्हारे को belief हो गयी है, वो ही भूल है। दूसरी कोई भूल नहीं है। वो ही egoism है। 'मैं इसका Father हूँ', वो दूसरी wrong belief है। 'मैं इसका हसबन्ड हूँ', वो तीसरी wrong belief है। ऐसी कितनी wrong belief है? wychaf: So I am nothing? दादाश्री: नहीं, Right belief है न। हम ये सब wrong belief frecture कर देते है और Right belief दे देते है।
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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