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________________ सर्व दुःखों से मुक्ति जाता है। 'कढापा - अजंपा' तुमको समझ में आता है? तुम्हारी language में क्या बोलते हो? 'कढापा अजंपा' याने तुमको मैं समझाता हूँ। २९ तुम्हारे यहाँ कोई महेमान बेठे है और नौकर चाय के दस कप ट्रे में लेकर आया और कुछ अड़चन आयी, तो उसके हाथ में से ट्रे गिर गयी तो आपको अंदर कुछ होता है? प्रश्नकर्ता : मेरी चीज है तो effect होती है। पड़ौसी की होगी तो मुझे कुछ नहीं होगा । दादाश्री : आपकी चीज हो और आप विचारशील होते, तो आप मुँह से कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि आप सोचते है कि सब लोग के सामने मैं नौकर के साथ लडुंगा तो सबके सामने मेरी इज्जत चली जायेगी । इसलिए मुँह से कुछ नहीं बोलता है, मगर अंदर में बोलता है कि सब लोग जायेगें फिर नौकर को मारूँगा। मन में जो effect होती है, उसको 'अजंपा' बोला जाता है और मुँह से लड़ने लगा तो उसको 'कढापा' बोला जाता है। किसी को दुःख हो ऐसी speech नहीं होनी चाहिये । वर्तमान में रहोगे कैसे? गोवा से खंभात आये तो थकान नहीं लगी? Tired नहीं हो गये? प्रश्नकर्ता: नहीं, आपके पास आने से सब थकान चली गयी। दादाश्री : हाँ, मगर थकान लगी थी न? क्योंकि आप क्या बोलते है कि मैं गोवा से खंभात आया। सच तो गाडी इधर आई है, मगर आप बोलते है कि मैं आया। लेकिन आप तो गाडी में सीट पर बैठे थे! आपकी समझ में एसा आये कि मैं नहीं आया, मुझे गाडी लेकर आयी। फिर psychology effect ऐसी हो जायेगी, तो थकान नहीं लगेगी। सर्व दुःखों से मुक्ति हम बम्बई से गाड़ी में बैठते है और गाड़ी बडौदे जाती है, तो हम देखते है कि सब लोग ऐसा बोलते है कि 'बडौदा आया, बडौदा आया'। तो हम उतर जाते है, बस । बम्बई से हम नहीं आये, ये गाडी आयी। और जो बम्बई से आया वो घर पहुँचते ही क्या बोलता है कि 'अरे भाई, अभी चाय रख दे, जल्दी चाय रख दे, मैं थक गया हूँ।' अरे, तुं तो गाड़ी में बैठकर आया था, तो फिर कैसे बोलता है कि मैं थक गया ? ! ३० प्रश्नकर्ता: This is real scince ! दादाश्री : हाँ, मैं तो ऐसे ही करता हूँ। हमको जब 'ज्ञान' नहीं हुआ था, तब हम बम्बई से बडौदा आते थे, तो सब लोग हमको स्टेशन पर छोडने को आते थे। गाडी शुरू हुई तो सब लोग चले जाते थे, तो 'मैं' ये 'A.M.Patel' को क्या बोलता था कि Contractor साब, बम्बई छूट गया और अभी बडौदा आया नहीं। गाडी ने whistle मार दी तो बम्बई बिलकुल छूट गया, बडौदा अभी आया नहीं तो हम अभी मोक्ष में ही है। बम्बई से छूट गया, बडौदा से बंधन हुआ नहीं, तो अभी मुक्त हो गये, मोक्ष में ही है। देखो न, सोते सोते मोक्ष में रहने का । अंतर सुख - बाह्य सुख का बेलेन्स ! भौतिक सुख तो सब अपने हिसाब का लेकर आये है, वो ही भुगतने का है। मगर आंतरिक सुख की जरा भी कमी पड़े तो आनंद नहीं आता। भौतिक सुख के साथ अंतर सुख भी होना चाहिये । भगवान ने क्या कहा था कि अंतर सुख और बाह्य सुख, दोनों सुख साथ चाहिये। उसमें अगर भौतिक सुख ज्यादा बढ़ गया तो आंतरिक सुख कम हो जायेगा। आंतरिक सुख कम हो गया तो आदमी के दिमाग की खराबी हो जायेगी। ये भौतिक सुख थोडा कम हो तो चलेगा मगर आंतरिक सुख तो होना ही चाहिये। आंतरिक सुख होतो
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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