SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेम १७ होता है, पर छह महीने तक उसका मोह रहता है, और इस मदर को तो साठ वर्ष का हो जाए तब भी मोह नहीं जाता। प्रश्नकर्ता: पर माँ को बालक पर जब प्रेम होता है, तब निष्काम ही है न? दादाश्री : नहीं है वह निष्काम प्रेम माँ को बालक पर निष्काम प्रेम नहीं होता। वह तो लड़का फिर बड़ी उम्र का हो तब कहता है कि, 'आप तो मेरे बाप की पत्नी हो', तो? उस घड़ी पता चलेगा कि निष्काम था या नहीं? जब लड़का कहे कि 'आप मेरे फादर की वाइफ हो।' उस दिन माँ का मोह उतर जाता है कि, 'तू मुँह मत दिखाना।' अब फादर की वाइफ मतलब माँ नहीं? तब माँ कहती है, 'पर ऐसा बोला क्यों?" उसे भी मीठा चाहिए। सब मोह ही है। इसलिए वह प्रेम भी निष्काम नहीं है। वह तो मोह की आसक्ति है। जहाँ मोह होता है और आसक्ति होती है, वहाँ निष्कामता होती नहीं। निष्काम मोह तो आसक्ति रहित होता है। प्रश्नकर्ता: वह आपकी बात सच है। वह तो बालक बड़ा होता है फिर वैसी आसक्ति बढ़ती है। पर जब बालक छह महीने का छोटा हो तब ? दादाश्री : उस घड़ी भी आसक्ति ही है। पूरे दिन आसक्ति ही है। जगत् आसक्ति से ही बंधा हुआ है। जगत् में प्रेम नहीं हो सकता किसी जगह पर । प्रश्नकर्ता: वैसा बाप को होता है ऐसा मान सकता हूँ, पर 'माँ' का दिमाग़ में उतरता नहीं ठीक से अभी मुझे । दादाश्री : ऐसा है न, बाप स्वार्थी होता है, जब कि माँ बच्चों की ओर स्वार्थी नहीं होती। यानी इतना फर्क होता है। माँ को क्या रहता है? उसे बस आसक्ति ही, मोह !! दूसरा सब भूल जाती है, भान भूल जाती है। उसमें निष्काम एक क्षणभर को भी नहीं हो सकती। निष्काम तो हो १८ प्रेम नहीं सकता मनुष्य । निष्काम तो 'ज्ञानी' सिवाय कोई हो नहीं सकता। और ये जो सब निष्काम होकर फिरते हैं न, वे दुनिया का लाभ उठाते हैं। निष्काम का अर्थ तो होना चाहिए न? डाँटने से पता चले प्रश्नकर्ता : तो माता-पिता का प्रेम जो है, वह कैसा कहलाता है? दादाश्री : माता-पिता को एक दिन गालियाँ दे न तो फिर वे आमनेसामने हो जाएँ। यह 'वर्ल्डली' प्रेम तो टिकता ही नहीं न! पाँच वर्षों में, दस वर्षों में भी उड़ जाता है वापिस किसी दिन । सामने प्रेम होना चाहिए, चढ़े - उतरे नहीं ऐसा प्रेम होना चाहिए। फिर भी बच्चे पर बाप किसी समय जो गुस्सा करता है, उसमें हिंसकभाव नहीं होता। प्रश्नकर्ता: वह असल में तो प्रेम है? दादाश्री : वह प्रेम है ही नहीं। प्रेम हो तो गुस्सा नहीं होता । पर हिंसकभाव नहीं है उसके पीछे। इसलिए वह क्रोध नहीं कहलाता। क्रोध हिंसकभाव सहित होता है। व्यवहार में माँ का प्रेम उत्कृष्ट सच्चा प्रेम तो किसी भी संयोगों में टूटना नहीं चाहिए । इसलिए प्रेम उसका नाम कहलाता है कि टूटे नहीं। यह तो प्रेम की कसौटी है। फिर भी थोड़ा-बहुत प्रेम है, वह माता का प्रेम है। प्रश्नकर्ता: आपने ऐसा कहा कि माँ का प्रेम हो सकता है, बाप को नहीं होता। तो इन्हें बुरा नहीं लगेगा? दादाश्री : फिर भी माँ का प्रेम है, उसका विश्वास होता है। माँ बच्चे को देखे, तब खुश। इसका कारण क्या है? कि बच्चे ने अपने घर में ही, अपने शरीर में ही नौ महीने मुकाम किया था। इसलिए माँ को ऐसा
SR No.009600
Book TitlePrem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size232 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy