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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण पर हम कहें कि तुम्हारे आदमी ने तोड़ी है, तो हो गया शुरू फिर, अतिक्रमण किया, उसका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। और अतिक्रमण हुए बिना रहता नहीं, इसलिए प्रतिक्रमण करें। बाकी सब क्रमण है। सहज बात हुई वह क्रमण है, उसमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन अतिक्रमण हुए बगैर नहीं रहता। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करें। प्रश्नकर्ता : यह अतिक्रमण हुआ ऐसा खुद को कैसे मालूम हो? दादाश्री : वह खुद को भी मालूम होगा और सामनेवाले को भी मालूम होगा। हमें मालूम होगा कि उसके चेहरे पर असर हो गया है और आपको भी असर हो जाये। दोनों को असर होता है। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करना अनिवार्य होगा ही। क्रोध-मान-माया-लोभ वे सभी अतिक्रमण कहलाये। यह अतिक्रमण हुआ, उसका प्रतिक्रमण किया, तो क्रोध-मान-माया-लोभ गये। अतिक्रमण से यह संसार खड़ा हुआ है और प्रतिक्रमण से नष्ट होता निमित्त है और हमारा ही हिसाब है। यह तो निमित्त को काटने दौड़ते है और इसी के झगड़े हैं सभी। उलटे चले उसका नाम अतिक्रमण और वापस लौट आये उसका नाम प्रतिक्रमण। जहाँ झगड़ा है वहाँ प्रतिक्रमण नहीं है और जहाँ प्रतिक्रमण है वहाँ झगड़ा नहीं है। लड़के को पिटने का कोई अधिकार नहीं है, समझाने का अधिकार है। फिर भी लड़के की पीटाई कर दी और प्रतिक्रमण नहीं किया तो सारे कर्म चिपकते ही रहेंगे न? प्रतिक्रमण तो होना ही चाहिए। __'मैं चन्दुभाई हूँ' यही अतिक्रमण। फिर भी व्यवहार में उसे 'लेट गो' (सनी-अनसनी) करेंगे। लेकिन आपसे किसी को दुःख होता है? दु:ख नहीं होता तो वह अतिक्रमण नहीं हुआ। दिनभर में खद से किसी को दुःख पहुँचा हो तो वह अतिक्रमण हुआ। उसका प्रतिक्रमण कीजिए। यह तो वीतरागों का विज्ञान है। अतिक्रमण अधोगति में ले जायेगा और प्रतिक्रमण उर्ध्वगति में ले जायेगा और अंततः मोक्ष तक प्रतिक्रमण ही हेल्प करेगा। प्रतिक्रमण किसे नहीं करना होगा? जिसने अतिक्रमण नहीं किया हो उसे। प्रश्नकर्ता : व्यवहार, व्यापार और अन्य प्रवत्ति में अन्याय होता लगे और उससे मन में ग्लानि हो, उसमें यदि व्यवहार को नुकसान पहुँचे तब उसके लिए क्या करना? हम से अगर ऐसा अन्याय होता हो तो उसका प्रायश्चित क्या? दादाश्री : प्रायश्चित में आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान होना चाहिए। जहाँ-जहाँ किसी को अन्याय होता हो वहाँ आलोचना, प्रतिक्रमण होना चाहिए और फिर अन्याय नहीं करूँगा ऐसा तय करना चाहिए। जिस भगवान को मानते हो, उनके पास पश्चाताप लेना चाहिए। आलोचना करनी चाहिए कि मुझ से लोगों के साथ ऐसा बुरा दोष हुआ है, अब फिर से प्रश्नकर्ता : तो प्रतिक्रमण माने क्या? दादाश्री : प्रतिक्रमण अर्थात् सामनेवाला हमारा जो अपमान करता है, तो हमें समझ लेना चाहिए कि इस अपमान का गुनहगार कौन है? वह जो अपमान करता है, वह गुनहगार है या भुगतनेवाला गुनहगार है। पहले हमें यह डिसीझन (निर्णय) लेना चाहिए। तो इसमें अपमान करनेवाला कतई गुनहगार नहीं होता। एक सेन्ट (प्रतिशत) भी गुनहगार नहीं होता। वह निमित्त होता है और हमारे ही कर्म के उदयाधीन वह निमित्त इकट्ठा होता है। अर्थात् यह हमारा ही गुनाह है। अब प्रतिक्रमण इसलिए करना है कि उस पर बुरे भाव होते हो तो प्रतिक्रमण करने चाहिए। उसके प्रति, वह नालायक है, लुच्चा है, ऐसा विचार मन में आ गया हो तो प्रतिक्रमण करने का। और ऐसा विचार नहीं आया हो और हमने उसे उपकारी माना हो तो प्रतिक्रमण करना जरूरी नहीं है। बाकी कोई भी गाली दे तो वह हमारा ही हिसाब है, देनेवाला तो निमित्त है। जेब काटे वह काटनेवाला
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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