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________________ प्रतिक्रमण ७७ दादाश्री : ऐसा है न कि यह ज्ञान ही ऐसा है कि सारे पाप भस्मीभूत हो जाते हैं, बंध खुल जाते हैं। नर्क में जानेवाले हो मगर वे प्रतिक्रमण करें, जीवित हो वहाँ तक, तो उसका धो जायेगा। पत्र पोस्ट में डालने से पहले आप लिख दे कि उपरोक्त वाक्य लिखते समय मन का ठिकाना नहीं था तो वह मिट जायेगा । प्रश्नकर्ता: प्रायश्चित से बंध खुल जायेगा ? दादाश्री : हाँ, खुल जायेगा। कुछ ही प्रकार के बंध हैं, जो कर्मों का प्रायश्चित करने से दोहरी गाँठ से ढ़ीले हो जायेंगे। अपने इस प्रतिक्रमण में तो बहुत शक्ति है। दादाजी को हाजिर रखकर करें तो काम बन जाये। कर्म के धक्के से जनम होने होंगे वे होंगे, शायद एक-दो जनम, पर उसके बाद सीमंधर स्वामी के पास ही जाना होगा। यह यहाँ का धक्का, पहले से बँधे हिसाब अनुसार, कुछ चिकना किया हुआ, वह पूरा हो जायेगा। उसमें छूटकारा ही नहीं! यह तो रघा सुनार की तराजू है। न्याय, जबरदस्त न्याय ! शुद्ध न्याय ! प्यार न्याय ! उसमें नहीं चलता पोलम्पोल । प्रश्नकर्ता: प्रतिक्रमण करने से कर्म के धक्के कम होंगे? दादाश्री : कम होंगे न! और जल्दी निबटारा हो जाये। प्रश्नकर्ता : जिसकी क्षमापना माँगने की है उस व्यक्ति का देहविलय हो गया तो क्या करें? दादाश्री : देहविलय हो गया हो, फिर भी हम उसकी फोटो हो, उसका चहेरा याद हो, तो कर सकते हैं। चहेरा जरा भी याद नहीं हो और नाम मालूम हो तो नाम लेकर भी कर सकते हैं, तो उसे सब पहुँच जाये। २३. मन मनाये मातम तब महात्माओं को भाव- अभाव होता है मगर वह निकाली कर्म है। भावकर्म नहीं है। क्रोध-मान-माया-लोभ-राग-द्वेष और भावाभाव, वे प्रतिक्रमण सभी निकाली कर्म हैं। उनका समभाव से निपटारा करने का है। इन कर्मों का प्रतिक्रमण के साथ निपटारा होता है, वैसे के वैसे निपटारा नहीं होगा । ७८ प्रश्नकर्ता: कभी हमारा अपमान हो जाये तो वहाँ मन का प्रतिकार जारी रहता है, वाणी से प्रतिकार शायद नहीं हो। दादा श्री उस वक्त क्या हो गया, उसमें हमें कोई हर्ज नहीं है। अरे, देह से भी प्रतिकार हो गया, तब भी वह जितनी जितनी शक्ति होगी, उसके अनुसार व्यवहार होता है। जिसकी संपूर्ण शक्ति उत्पन्न हो गई है, उसका मन का प्रतिकार भी बंद हो जायेगा। फिर भी हम क्या कहते हैं? मन से प्रतिकार जारी रहे, वाणी से प्रतिकार हो जाये, अरे! देह से भी प्रतिकार हो जाये। तो तीनों प्रकार की निर्बलता प्रकट हुई, इसलिए वहाँ तीनों तरह का प्रतिक्रमण करना होगा। प्रश्नकर्ता: विचार के प्रतिक्रमण करने होंगे? दादाश्री : विचारों को देखें, उसके प्रतिक्रमण नहीं करने होते । किसी के लिए बहुत बुरे विचार हो तो उसके प्रतिक्रमण करने होंगे। परंतु किसी का नुकसान करनेवाली चीज़ होने पर ही ऐसे ही आये, कहीं से कुछ भी आये, गाय- -भैंस के सभी तरह के विचार आये, वे तो ज्ञान हाजिर करके देखें तो उड़ जायें। उन्हें केवल देखना है। उसके प्रतिक्रमण नहीं होते। प्रतिक्रमण तो हमारा तीर किसी को लगा हो, तो ही करने होते है। यह हम यहाँ सत्संग में आयें और यहाँ कुछ लोग खडे हो, तो मन में होगा कि ये लोग यहाँ क्यों खड़े हैं? इससे मन के भाव बिगडेंगे, उस भूल के लिए उसका प्रतिक्रमण वहीं का वहीं करना पड़े। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण कर्मफल के करें या सूक्ष्म के करें? दादाश्री : सूक्ष्म के होंगे। प्रश्नकर्ता: विचारों के या भावों के?
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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