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________________ प्रतिक्रमण ६५ ६६ प्रतिक्रमण दादाश्री : इस वाक्य का आधार ले ही नहीं सकते। उस समय तो आपको प्रतिक्रमण का आधार दिया गया है। सामनेवाले को दु:ख हो ऐसा बोला जाये तो प्रतिक्रमण कर लेना। और सामनेवाला कुछ भी बोले, तब वाणी पर है और पराधीन है, उसका स्वीकार किया, इसलिए आपको सामनेवाले का दु:ख रहा ही नहीं न? दादाश्री : दोषों का अस्तित्व रहेगा, पर जली हुई रस्सी के समान रहेगा। यानी अगले जनम में हमने 'यु' किया कि सब जायें, प्रतिक्रमण से, उसमें से सत्त्व ऊड़ जाये सारा। कर्ता का आधार होने पर कर्म बंधेगे। अब आप कर्ता नहीं है. फिर भी पिछले कर्म जो थे, वे फल दे कर जायेंगे। नये कर्म बंधेगे नहीं। प्रश्नकर्ता : मनुष्य अकुलाकर बोले वह अतिक्रमण नहीं हुआ? दादाश्री : अतिक्रमण ही कहलाये। प्रश्नकर्ता : किसी को दुःख हो ऐसी वाणी निकल गई और उसका प्रतिक्रमण नहीं हुआ तो क्या होगा? दादाश्री : ऐसी वाणी निकल गई, तब उससे तो सामनेवाले को घाव होगा, इसलिए उसे दु:ख होगा। सामनेवाले को दुःख हो यह हमें कैसे भाये? प्रश्नकर्ता : उससे बंधन होगा? दादाश्री : यह कानून के विरुद्ध कहलाये न। कानून के विरूद्ध सही न? कानून के विरूद्ध तो नहीं होना चाहिए न? हमारी आज्ञा पाले, वह धर्म कहलाये। और प्रतिक्रमण करने में नुकसान क्या है हमें? माफ़ी माँग लें और फिर से नहीं करूँगा ऐसे भाव भी रखना। बस इतना ही। थोड़े में निबटाना, उसमें भगवान क्या करे? उसमें न्याय कहाँ देखने को जाये? यदि व्यवहार को व्यवहार समझा, तो न्याय समझ लिया! पड़ोसी उलटा क्यों बोल गये? क्योंकि हमारा व्यवहार ऐसा था इसलिए। और हम से वाणी उलटी निकले तो वह सामनेवाले के व्यवहार के अधीन है। पर हमें तो मोक्ष चाहिए, इसलिए उसका प्रतिक्रमण कर लें। प्रश्नकर्ता : सामनेवाला उलटा बोले तब अपने ज्ञान से समाधान रहता है, लेकिन मुख्य सवाल यह है कि, हमारे से कडुआ निकलता है, उस समय हम 'वाणी पर है और पराधीन है' इस वाक्य का आधार लें तो हमें उलटा लायसन्स मिल जाता है। प्रश्नकर्ता : परमार्थ हेतु थोड़ा झूठ बोलने पर दोष लगेगा? दादाश्री : परमार्थ अर्थात आत्मा के लिए जो कछ भी किया जाये. उसमें दोष नहीं लगता और देह के खातिर जो कुछ भी किया जाये, कुछ गलत किया तो दोष लगेगा और अच्छा किया तो फायदेमंद लगेगा। आत्मा के लिए जो कुछ भी किया जाये उसमें हरकत नहीं है। हाँ, आत्महेतु हो, उसके संबंधी जो जो कार्य हो, उसमें कोई दोष नहीं है। सामनेवाले को हमारे निमित्त से दुःख पहुँचे तो दोष लगता है। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण का असर नहीं होने का कारण क्या है? हमने पूर्ण भाव से नहीं किया या सामनेवाले व्यक्ति के आवरण है? दादाश्री : सामनेवाले व्यक्ति को हमे नहीं देखना है। वह तो पागल भी होगा। हमारे कारण उसको दु:ख नहीं होना चाहिए, बस! प्रश्नकर्ता : अर्थात् किसी भी तरह, उसे दुःख होने पर, उसका समाधान करने का हमें प्रयत्न करना चाहिए। दादाश्री : उसे दुःख होने पर समाधान अवश्य करना चाहिए। वह हमारी 'रिस्पोन्सिबिलिटि' (जिम्मेदारी) है। हाँ, दु:ख नहीं हो उसके लिए तो हमारी लाइफ (जिन्दगी) है। प्रश्नकर्ता : पर मान लिजिए कि ऐसा करने पर भी सामनेवाले का समाधान नहीं होता हो, तो फिर हमारी जिम्मेदारी कितनी? दादाश्री : रूबरू जाकर यदि आँखों से बन सके तो आँखों में नरमी
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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