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________________ प्रतिक्रमण ५४ प्रतिक्रमण की गैरहाजिरी में भोक्ता हैं, इसलिए यह मिट जाये। और इस संसार में लोग कर्ता की हाजिरी में भोक्ता हैं। इसलिए प्रतिक्रमण करने पर उसे थोड़ा ढीला होगा, परंतु उड़ नहीं जायेगा। फल दिये बिना रहता नहीं और आपको तो वह कर्म ही उड़ जायेगा। ऐसा सब करोगी तो तुम्हारी सर्विस (नौकरी) चली जायेगी। प्रश्नकर्ता : लेकिन उस समय उसको दुःख होगा और आपने कहा है, कि दूसरों को दु:ख मत देना। दादाश्री : दुःख नहीं होगा। क्योंकि जब हम नाटयात्मक रूप से बोलेंगे तो उन्हें दुःख नहीं होगा, सिर्फ उनके मन में जागृति आयेगी, उनके निश्चय बदल जायेंगे। हम दुःख नहीं देते हैं। दुःख तो कब होगा? यदि हमारा इरादा दुःख देने का होगा न, कि उनको सीधी कर डालूँ, तो उन्हें दु:ख उत्पन्न होगा। किसी के दोष नहीं दिखे तो समझना कि 'सर्व विरती' पद है, संसार में रहने पर भी! ऐसा यह 'अक्रम विज्ञान का' 'सर्व विरती' पद अलग तरह का है। संसार में बैठे, सिर में तेल डालते, कान में इत्र का फाया डालकर घूमता हो फिर भी उसे किसी का दोष नज़र नहीं आयेगा। वीतद्वेष* हुआ वह एकावतारी कहलाता है। वीतद्वेष में जिसे कच्चा रहा हो, उनके दो-चार अवतार होंगे। १५. भाव अहिंसा की डगर पर... प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाने से पहले, किसी भी जीव के साथ लेनदेन हो तो हम उसके प्रतिक्रमण किया करें तो हमें छुटकारा मिल जाये? दादाश्री : हाँ। क्रोध का ज्ञाता-दृष्टा रहे, इसलिए शुद्ध हो कर क्रोध चला गया। वे परमाणु शुद्ध होकर चले गये। ज्ञाता-द्रष्टा रहना उतना आपका फर्ज है। प्रश्नकर्ता : क्रोध करने के पश्चात् प्रतिक्रमण करें तो वह पुरुषार्थ कहलायें या पराक्रम? दादाश्री : वह पुरुषार्थ कहलाये, पराक्रम नहीं कहलाता। प्रश्नकर्ता : तब फिर पराक्रम किसे कहेंगे? दादाश्री : पराक्रम तो इस पुरुषार्थ से भी ऊपर जायेगा। और यह पराक्रम नहीं है। यह तो जलन होती हो और दवाई लगायें. उसमें पराक्रम कहाँ से आया? उन सबको जाने, और यह जाननेवाला उसको जाने उसका नाम पराक्रम। और प्रतिक्रमण करें उसका नाम पुरूषार्थ। आखिरकार यह प्रतिक्रमण करते करते सब शब्दों का जंजाल कम होता जायेगा। सब कम होता जायेगा अपने आप। नियम से ही सब कम होता जायेगा। कुदरती रूप से सब बंद हो जाये। पहला अहंकार जाये, फिर बाकी सब जाये। सब अपने-अपने घर चले। और भीतर ठंडक है। अब भीतर ठंडक है प्रश्नकर्ता : पर उसके लिए क्या बोलना? दादाश्री : जिन-जिन जीवों को मुझ से कुछ भी दुःख हो, वे सभी मुझे क्षमा करें। प्रश्नकर्ता : जीवमात्र? दादाश्री : जीवमात्र को। प्रश्नकर्ता : अर्थात् उसमें फिर वायुकाय, तेउकाय सभी जीव आ जायें? न? प्रतिक्रमण से सारे कर्म मिट जायें। कर्ता की गैरहाजिरी है, इसलिए सर्वथा मिट जायें। कर्ता की गैरहाजिरी में ये कर्म हम भुगत रहे हैं। कर्ता दादाश्री : वह सब बोले, इसलिए उसमें सभी आ जाये। प्रश्नकर्ता : किसी जीव की अनजाने में हिंसा हो जाये तो क्या करें? * आत्मज्ञान पाने के बाद आज्ञापालन करनेवाले की दशा
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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