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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण प्रश्नकर्ता : दूसरों के दोष देखने से आर्तध्यान-रौद्रध्यान होता है? दादाश्री : हाँ, वह दूसरों के दोष देखने का माल भीतर भरकर आया है, इसलिए ऐसा देखेगा। फिर भी वह खुद दोष में नहीं आता। उसे प्रतिक्रमण करना चाहिए कि ऐसा क्यों होता है? ऐसा नहीं होना चाहिए। बस इतना ही। वह तो जैसा माल भरा होगा वैसा निकलेगा। उसे हम भरा हुआ माल' ऐसा सामान्य भाषा में कहते हैं। अब रात को दस-बारह व्यक्ति आये और 'चन्दुभाई है क्या?' ऐसा कहकर आवाज़ दें। आपके गाँव से आये हो और उनमें एक-दो आपके पहचानवाले हो, और दूसरे उनके पहचानवाले हो, और उनके आवाज़ देने पर रात के साढ़े ग्यारह बजे आप उन लोगों को क्या कहेंगे? दरवाजा खोलेंगे या नहीं खोलेंगे? अब फिर भी हम क्या कहेंगे? हमारे संस्कार छोडेंगे नहीं न? धीरे से कहें कि, 'थोड़ी... थोड़ी... थोड़ी...' अरे मगर क्या थोड़ी? तब कहें, थोड़ी-सी चाय... तब ऐसे खुला कहनेवाले होते हैं वे कहेंगे, 'चन्दुभाई, इस वक्त चाय रहने दीजिए, इस वक्त खिचड़ी-कढ़ी बनाइए, बहुत हो गया।' अब देखो तेरी घरवाली की हालत ! रसोईघर में हुडदंग मच जायेगा न? अब भगवान की आज्ञा क्या है? जिसे मोक्ष में जाना है उसे क्या करना चाहिए? इस वक़्त कहाँ से टपके, ऐसा भाव आ ही जायेगा मनुष्य को; इस समय तो इस दुषमकाल का दबाव ऐसा है, वातावरण ऐसा है, अतः उसे (ऐसा विचार) आ जायेगा। रईस होगा उसे भी आ जायेगा। अब यह तू किस लिए भीतर ऐसा चित्रित करता है? बाहर अच्छा दिखावा करता है और भीतर उलटा चित्रित करता है। अर्थात् हम यह जो अच्छी तरह से बुलाते हैं वह पिछले अवतार का फल भुगतते हैं और यह अंदर के हिसाब से 'इस वक्त कहाँ से टपके'। (ऐसा मन में भाव बिगाड़कर) उलटा बाँधते हैं। ऐसे नये अगले जनम का कर्म बाँधते हैं। अतः वहाँ उस वक्त हम भगवान से क्षमा माँगकर कहें कि, भगवान, मेरी भूल हो गई। इस वातावरण के दबाव में आकर बोल गया परंतु मेरी ऐसी इच्छा नहीं है। वे भले ही रहें। ऐसे आप पोंछ दें, वह आपका पुरूषार्थ कहलाये। ऐसा होगा तो सही, ऐसा तो बड़े-बड़े संयमधारियों को भी होगा। यह काल ऐसा विचित्र है। किंतु यदि आप पोंछ दें तो आपको ऐसा फल मिलेगा। प्रश्नकर्ता : सामान्यतया एक घंटे में पाँच-पचीस अतिक्रमण हो जाते प्रश्नकर्ता : हाँ, खोलेंगे। दादाश्री : और फिर क्या कहेंगे, उन लोगों को? वापस जाईये ऐसा कहेंगे? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं, वापस जाईये, ऐसा कैसे कह सकते हैं? दादाश्री : तब क्या कहोंगे? प्रश्नकर्ता : अंदर बुलायेंगे हम। 'आइए अंदर'। दादाश्री : 'आइए, पधारिए, पधारिए।' हमारे यह संस्कार है न? इसलिए 'आइए, पधारिए' कहेंगे, सभी को सोफासेट पर बिठाएँगे। सोफे पर बच्चा सोया पड़ा हो तो जलदी-जलदी उठा लेंगे और सोफे पर बिठाएँगे। किंतु मन में ऐसा होगा कि, 'मुए, ये इस वक़्त कहाँ से आये?!' अब यह आर्तध्यान नहीं है, रौद्रध्यान है। सामनेवाले मनुष्य के प्रति हम यह भाव बिगाड़े; आर्तध्यान तो खुद अपनी ही पीडा भगतना उसे कहते है। यह तो दूसरों की पीडा खुद के ऊपर लेकर दूसरों पर यह 'ब्लेम' (आरोप) लगाया, 'इस वक्त कहाँ से टपके?' दादाश्री : वे इकट्ठा करके करें, एक साथ भी हो सकते हैं। वे सारे प्रतिक्रमण इकट्ठे करता हूँ, कहें। प्रश्नकर्ता : वह कैसे करना? क्या कहना?
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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