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________________ प्रतिक्रमण ४३ प्रतिक्रमण प्रश्नकर्ता : सामनेवाले पर शंका नहीं करनी हो, फिर भी शंका होती है तो उसे कैसे दूर करना? दादाश्री : वहाँ फिर उसके शुद्धात्मा को याद करके क्षमा माँगना। उसका प्रतिक्रमण करना। यह तो पहले भूलें की थी इसलिए शंका होती ११. पुरूषार्थ - प्राकृत दुर्गुणों के सामने... बिना राग की तो लाइफ (जिन्दगी) ही कोई गई नहीं। जहाँ तक ज्ञान प्राप्त नहीं होता, वहाँ तक राग और द्वेष दो ही किया करते हैं। तीसरी वस्तु ही नहीं होती। प्रश्नकर्ता : किंतु दादाजी, द्वेष तो राग का ही फरजंद है न? दादाश्री : हाँ, वह फरजंद उसका है, परंतु उसका परिणाम है, फरजंद माने उसका परिणाम है। राग अधिक मात्रा में होने से, जिस पर राग होता है, वह एक्सेस (अधिक मात्रा में) हो जाये, परिणाम स्वरूप उस पर द्वेष होगा फिर। कोई भी चीज़ उसके प्रमाण से बाहर जायेगी तो हमें अप्रिय होने लगेगी और अप्रिय होना उसका नाम द्वेष! आया समझ में? प्रश्नकर्ता : हाँ, समझ में आया। दादाश्री : वह तो हमें समझ लेना चाहिए कि, हमारे ही रीएक्शन (प्रतिक्रिया) आये हैं सभी। हम उसे (सामनेवाले को) सम्मान से बुलाएँ, और हमें लगे कि उसका मुँह फुला हुआ नज़र आये है तो हमें समझ लेना चाहिए कि यह हमारा रीएक्शन है। इसलिए क्या करना? प्रतिक्रमण करना। दूसरा कोई उपाय नहीं है संसार में, तब इस संसार के लोग क्या करते हैं? उस पर अपना मुँह फुलाते हैं ऊपर से! अर्थात् फिर से जैसा था वैसा ही संसार खड़ा करें। हम शुद्धात्मा हुए, इसलिए समझा-बुझाकर हमारी भूल एक्सेप्ट (स्वीकार) करके भी छोड़ देना चाहिए। हम तो ज्ञानी पुरूष होकर भी सभी भूलें एक्सेप्ट करके केस पूरा कर देते हैं। प्रश्नकर्ता : जो ईर्ष्या होती है वह नहीं हो, इसलिए क्या करना? दादाश्री : उसके दो उपाय है। ईर्ष्या होने के बाद पश्चाताप करना और दूसरा, ईर्ष्या होती है वह ईर्ष्या आप नहीं करते। ईर्ष्या वह पूर्व जनम के परमाणु भरे हुए हैं। उसको एक्सेप्ट (स्वीकार) न करें। उसमें तन्मयाकार नहीं होने से ईर्ष्या उड़ जायेंगी। आपको ईर्ष्या होने पर पश्चाताप करना वही उत्तम है। जंगल में जाने पर लौकिक ज्ञान के आधार पर 'डकैत मिलेगा तो?' ऐसे विचार आये, अथवा शेर मिलेगा तो क्या होगा? ऐसा विचार आये तो उसी समय प्रतिक्रमण कर डालना। शंका हुई इसलिए बिगड़ा। शंका नहीं होने देना। किसी भी मनुष्य के लिए कुछ भी शंका आये तो प्रतिक्रमण करना। शंका ही दुःखदायी है। शंका होने पर प्रतिक्रमण करा लें। और हम ठहरे इस ब्रह्मांड के स्वामी, हमें शंका क्यों होगी?! मनुष्य हैं इसलिए शंका तो होगी। लेकिन भूल हुई अतः नक़द प्रतिक्रमण कर लें। जिसके लिए शंका हुई उसका प्रतिक्रमण करना। वरना शंका आपको खा जायेगी। किसीके लिए जरा-सा भी उलटा-सुलटा विचार आया कि, तुरन्त उसे धो डालना। वह विचार यदि थोड़ी देर के लिए रहेगा तो सामनेवाले को पहुँच जायेगा और फिर अंकुरित होगा। चार घंटे, बारह घंटे या दो दिन के बाद उसे असर होगा। इसलिए स्पंदन का बहाव उस ओर नहीं जाना चाहिए। हमेशा किसी भी बुरे कार्य का पछतावा करोगे, तो उस कार्य का फल बारह आने नष्ट हो ही जाता है। फिर जली हई रस्सी होती है न. उसके जैसा फल देगा। उस जली हुई रस्सी को अगले जनम में ऐसे ही हाथ में लेने से ही वह उड़ जायेगी। कोई भी क्रिया यूँ ही व्यर्थ जाती ही नहीं है। प्रतिक्रमण करने से वह रस्सी जल जाती है परंतु उसकी डिझाइन (आकृति) वैसी की वैसी ही रहती है। किंतु अगले जनम में क्या करना पड़ेगा? ऐसे ही झाड़ने से उड़ जायेगी।
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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