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________________ प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण करना है। प्रतिक्रमण किया कि हम मुक्त। आपकी जिम्मेदारी से आप मुक्त। फिर वह चिंता करके, सिर फोड़कर, मर भी जाये, उसका आपको कुछ लेना-देना नहीं है। हम से भी किसी न किसी मनुष्य को दु:ख हो जाता है, हमारी इच्छा नहीं होती, फिर भी अब हम से ऐसा होता ही नहीं है, परंतु किसी एकाध मनुष्य के साथ हो जाता है। अब तक, पंद्रह-बीस साल में दोतीन मनुष्यों के साथ हुआ होगा। वह भी निमित्त होगा इसलिए न? हम पीछे फिर उसका प्रतिक्रमण करके उस पर फिर बाड़ लगा दें ताकि वह गिर नहीं जाये। जितना हमने उसको ऊपर चढ़ाया है वहाँ से नीचे नहीं आ जाये, उसके रक्षण के लिए सब आधार रख दें। हम सैद्धांतिक ठहरे, कि भैया, यह पेड़ लगाया, उसे लगाने के बाद रोड की लाइनदोरी में आता हो तो रोड को हटायेंगे मगर पेड़ को कुछ नहीं होने देंगे। ऐसा हमारा सिद्धांत होगा। ऐसे किसी को गिरने नहीं देते। प्रश्नकर्ता : कोई मनुष्य भूल करे, फिर हम से क्षमा चाहे, हम क्षमा कर दें, नहीं माँगने पर भी मन से क्षमा कर दें, किंतु घड़ी-घड़ी वह भूल करता रहे तो हम क्या करें? दादाश्री : प्रेम से समझायें, समझा सकें उतना समझायें, दूसरा कोई उपाय नहीं है और हमारे हस्तक कोई सत्ता नहीं है। हमारे क्षमा करने पर ही छुटकारा है इस संसार में। अगर नहीं माफ़ करोगे तो मार खाकर माफ़ करना पड़ेगा आपको। दूसरा उपाय ही नहीं है। हम समझायें, वह बारबार भूल नहीं करे, ऐसा भाव परिवर्तन हो तो बहुत हो गया। उसका भाव परिवर्तन हो जाये कि अब भूल नहीं करनी है। फिर भी हो जाये यह अलग बात है। लडके को सब्जी लेने भेजें और वह उसमें से पैसे सरका ले तो फिर जानने से क्या फायदा है? वह तो जैसा है वैसा ही निबाह लेना, उसे थोड़ा फेंक देंगे? क्या दूसरा लेने जायेंगे? दूसरा मिलेगा ही नहीं। कोई बेचता थोड़े है? १०. टकराव के प्रतिपक्ष में प्रश्नकर्ता : कभी कभार ज्यादा, बढ़-चढ़कर तकरार हो गई हो तो, लंबा बंधन होगा। उसके लिए प्रतिक्रमण दो-चार बार या अधिक बार करने होंगे या फिर एक बार करने से काम चल जायेगा? दादाश्री : जितना हो सके इतना करें और फिर सामूहिक कर डालें। प्रतिक्रमण बहुत सारे इकट्ठा हो जायें, तो सामूहिक प्रतिक्रमण करें। 'हे दादा भगवान! इन सभी का मैं साथ में प्रतिक्रमण करता हूँ।' फिर सुलझ गया सब कुछ। जिसे टकराव नहीं हो उसे तीन जनम में मैं मोक्ष की गारन्टी देता हूँ। टकराव हो जाये तो प्रतिक्रमण करना। टकराव पुद्गल का है और पुद्गल, पुद्गल का टकराव प्रतिक्रमण से नष्ट होता है। वह भाग करता हो तो हम गुणन करें, इससे रकम ऊड़ जायेगी। सामनेवाले के बारे में सोचना कि, 'उसने मुझे ऐसा कहा, वैसा कहा,' यही गुनाह है। यह राह चलते समय खंभा टकराने पर उसके साथ क्यों नहीं झगड़ते? पेड़ को जड़ (निश्चेतन) क्यों कहेंगे? जिससे चोट लगे, वे सभी हरे पेड़ ही हैं! प्रश्नकर्ता : स्थूल टकराव का उदाहरण दीजिए, फिर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम के उदाहरण। सूक्ष्म टकराव कैसा होगा? दादाश्री : तुझे फादर (पिताजी) के साथ होते हैं वे सारे सूक्ष्म टकराव। प्रश्नकर्ता : अर्थात् कैसा कहलाये? दादाश्री : उसमें मार-पीट करते हो? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : वह सूक्ष्म टकराव।
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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