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________________ प्रतिक्रमण नहीं कि 'यह मेरा बड़ा बेटा, शतायु ।' लेकिन सभी ऊपर-ऊपर से, नाटकीय । यह सभी को सच्चे मान लिए उसी के ही प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। यदि सच नहीं समझे होते तो प्रतिक्रमण नहीं करने पड़ते। जहाँ सत्य मानने में आया, वहाँ राग और द्वेष शुरू हो जाते हैं और प्रतिक्रमण से ही मोक्ष है। यह 'दादाजी' दिखाते हैं वह आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान से मोक्ष है। ३५ किसी के हाथ में परेशान करने की भी सत्ता नहीं है और किसी के हाथ में सहन करने की भी सत्ता नहीं है। ये तो सभी पूतलें ही हैं। वे सभी काम किया करते हैं। हमारे प्रतिक्रमण करने पर पूतले अपनेआप सीधे हो जायेंगे। बाकी, कैसा भी पगला मनुष्य हो परंतु वह हमारे प्रतिक्रमण से सयाना हो सकता है। एक मनुष्य के साथ आपको बिलकुल अनुकूल नहीं आता, उसका यदि आप सारा दिन प्रतिक्रमण करें, दो-चार दिन करते रहें तो पाँचवे दिन तो वह आपको खोजता खोजता यहाँ आयेगा । आप के अतिक्रमण दोष की वजह से ही यह सब रूका हुआ है। प्रश्नकर्ता: इसमें कभी-कभी हमें दुःख होता है कि, मैं इतना कुछ करता हूँ फिर भी यह मेरा अपमान करता है? दादाश्री : हमें उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। यह तो व्यवहार है। इसमें हर तरह के लोग हैं। वे मोक्ष में नहीं जाने दें। प्रश्नकर्ता: वह प्रतिक्रमण हम किस लिए करें? दादाश्री : प्रतिक्रमण इसलिए करें कि इसमें मेरे कर्म का उदय था और आपको (सामनेवाले को) ऐसा कर्म बाँधना पड़ा। उसका प्रतिक्रमण करता हूँ और फिर से ऐसा नहीं करूँगा कि जिससे अन्य किसी को मेरे निमित्त से कर्म बाँधना पड़े ! जगत् किसी को मोक्ष में जाने दे ऐसा नहीं है। हर तरफ से अँकुड़े प्रतिक्रमण से यूँ खींच ही लायेगा। इसलिए हम प्रतिक्रमण करें तो अँकुड़ा छुट जायेगा, इसलिए महावीर भगवान ने आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान ये तीन चीज़े एक ही शब्द में दी है। दूसरा कोई रास्ता ही नहीं। अब खुद प्रतिक्रमण कब कर सकता है? खुद की जागृति हो तब, ज्ञानी पुरूष के पास ज्ञान प्राप्त हो तब यह जागृति उत्पन्न होगी । हम प्रतिक्रमण कर लें, फिर हम जिम्मेदारी से मुक्त हुए। प्रश्नकर्ता: किसी मनुष्य के ऊपर से हमारा विश्वास उठ गया हो, उसने हमारे साथ विश्वासघात किया हो और हमारा विश्वास उठ गया हो । उस विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए क्या करना चाहिए? ३६ दादाश्री : उसके लिए जो बुरे विचार किये हो न, उनका पश्चाताप करना चाहिए। विश्वास उठ जाने के पश्चात् हमने जो जो बुरा विचार किये हो, उनका पश्चाताप करना होगा, फिर ढंग से चल निकलेगा। इसलिए प्रतिक्रमण करने होंगे। ९. निर्लेपता, अभाव से फाँसी तक प्रश्नकर्ता: सामनेवाले मनुष्य को दुःख हुआ यह कैसे मालूम होगा ? दादाश्री : वह तो उसका चेहरा देखने से मालूम हो जाये। चेहरे पर से हास्य चला जाये। उसका चेहरा उतर जाये। अत: तुरन्त मालूम होगा न कि सामनेवाले को असर हुआ है, ऐसा मालूम नहीं पड़ेगा? प्रश्नकर्ता: पड़ेगा। दादाश्री मनुष्य में इतनी शक्ति तो होती ही है कि सामनेवाले को क्या हुआ वह मालूम पड़े ! प्रश्नकर्ता: परंतु कई ऐसे सयाने होते हैं कि चेहरे पर एक्सप्रेशन ( हाव-भाव ) नहीं आने देते। दादाश्री : फिर भी हमें तो मालूम होता हैं कि ये शब्द भारी निकले
SR No.009599
Book TitlePratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size39 KB
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